ये बादल भी न बिलकुल
तुम्हारी तरह नखरालू हैं
अपने होने का एहसास कराते हैं
फिर बिन बरसे चले जातें हैं ,
आसमान पर रोज़ छा जातें हैं
लगता है बस अब बरसे
तब बरसे
पर दिन ढलते ढलते
रूठ कर छिप जातें हैं ?
फिर से आ जाती है
हलकी सी धुप,
क्यों तड़पाते हो इतना ?
कभी तो टूट कर बरसो
तपते मन की तृष्णा शांत करो ,
देखो अब न बरसे
तो रूठ कर चली जाउंगी
फिर न कहना
" मेरे प्यार की बरसात मे
भिगो न आज "
रेवा
तुम्हारी तरह नखरालू हैं
अपने होने का एहसास कराते हैं
फिर बिन बरसे चले जातें हैं ,
आसमान पर रोज़ छा जातें हैं
लगता है बस अब बरसे
तब बरसे
पर दिन ढलते ढलते
रूठ कर छिप जातें हैं ?
फिर से आ जाती है
हलकी सी धुप,
क्यों तड़पाते हो इतना ?
कभी तो टूट कर बरसो
तपते मन की तृष्णा शांत करो ,
देखो अब न बरसे
तो रूठ कर चली जाउंगी
फिर न कहना
" मेरे प्यार की बरसात मे
भिगो न आज "
रेवा
True picture of clouds.very nice.
ReplyDeleteVinnie
सुन्दर रचना ....बहुत सही कहा आपने ...
ReplyDeleteसुन्दर ,सटीक और सार्थक . बधाई
ReplyDeleteसादर मदन .कभी यहाँ पर भी पधारें .
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
बहुत सुन्दर प्रेमभाव लिए अभिव्यक्ति
ReplyDeleteWow !!
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