माँ के बारे मे
हर रोज़ कितना कुछ लिखते हैं लोग
फिर भी बहुत कुछ अनकहा रह जाता है ,
'माँ ' ये शब्द ही इतना प्यारा है की
सोचने भर से मन प्यार से भर उठता है /
जानती थी माँ बड़ी बेटी है सामर्थवान
इसलिए रहती थी निश्चिन्त उसकी तरफ से
पर पता था उसे
छोटी कभी कुछ बोलती नहीं
पर दिक्कतों से चलाती है अपना घर संसार ,
माँ के पास भी धन नहीं था ज्यादा
फिर भी खुद पर एक पैसा खर्च नहीं करती थी
जोड़ जोड़ कर रखती और किसी बहाने से
छोटी को थमा देती ,
लाख मना करती छोटी
पर एक न सुनती माँ ,
ज्यादा बोलती छोटी तो रोने लगती
छोटी की एक न चलती ,
उसे ये भी समझाती
न बोलना बड़ी को वर्ना
उसे लगेगा बहनों मे भेद करती है माँ ,
माँ का ये भी एक रूप है
मरते दम तक बस अपने
सब बच्चों को खुशियाँ ही देना चाहती है ,
कभी कोई पूरी तरह
माँ को परिभाषित न कर पाया है
न कर पायेगा /
रेवा
हर रोज़ कितना कुछ लिखते हैं लोग
फिर भी बहुत कुछ अनकहा रह जाता है ,
'माँ ' ये शब्द ही इतना प्यारा है की
सोचने भर से मन प्यार से भर उठता है /
जानती थी माँ बड़ी बेटी है सामर्थवान
इसलिए रहती थी निश्चिन्त उसकी तरफ से
पर पता था उसे
छोटी कभी कुछ बोलती नहीं
पर दिक्कतों से चलाती है अपना घर संसार ,
माँ के पास भी धन नहीं था ज्यादा
फिर भी खुद पर एक पैसा खर्च नहीं करती थी
जोड़ जोड़ कर रखती और किसी बहाने से
छोटी को थमा देती ,
लाख मना करती छोटी
पर एक न सुनती माँ ,
ज्यादा बोलती छोटी तो रोने लगती
छोटी की एक न चलती ,
उसे ये भी समझाती
न बोलना बड़ी को वर्ना
उसे लगेगा बहनों मे भेद करती है माँ ,
माँ का ये भी एक रूप है
मरते दम तक बस अपने
सब बच्चों को खुशियाँ ही देना चाहती है ,
कभी कोई पूरी तरह
माँ को परिभाषित न कर पाया है
न कर पायेगा /
रेवा
HE MA TU KITANI SUNDAR HAI KITANI PYARI HAI
ReplyDeleteमाँ तो माँ है ...उस सा कोई नहीं है
ReplyDeleteमाँ की तुलना किसी से नहीं हो सकती...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteसच मे माँ बस माँ ही है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना | बेहतरीन
ReplyDeleteRewa.....so touching, i had tears while reading this beautiful poem.
ReplyDeleteshukriya Yashoda behen
ReplyDeleteमाँ के प्यार में निस्वार्थ भाव को समेटती आपकी खुबसूरत रचना...
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