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Wednesday, July 10, 2013

माँ

माँ के बारे मे
हर रोज़ कितना कुछ लिखते हैं लोग
फिर भी बहुत कुछ अनकहा रह जाता है ,
'माँ ' ये शब्द ही इतना प्यारा है की
सोचने भर से मन प्यार से भर उठता है /

जानती थी माँ बड़ी बेटी है सामर्थवान
इसलिए रहती थी निश्चिन्त उसकी तरफ से
पर पता था उसे
छोटी कभी कुछ बोलती नहीं
पर दिक्कतों से चलाती है अपना घर संसार ,
माँ के पास भी धन नहीं था ज्यादा
फिर भी खुद पर एक पैसा खर्च नहीं करती थी
जोड़ जोड़ कर रखती और किसी बहाने से
छोटी को थमा देती ,
लाख मना करती छोटी
पर एक न सुनती माँ ,
ज्यादा बोलती छोटी तो रोने लगती
छोटी की एक न चलती ,
उसे ये भी समझाती
न बोलना बड़ी को वर्ना
उसे लगेगा बहनों मे भेद करती है माँ ,
माँ का ये भी एक रूप है
मरते दम तक बस अपने
सब बच्चों को खुशियाँ ही देना चाहती है ,
कभी कोई पूरी तरह
माँ को परिभाषित न कर पाया है
न कर पायेगा /

रेवा

8 comments:

  1. HE MA TU KITANI SUNDAR HAI KITANI PYARI HAI

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  2. माँ तो माँ है ...उस सा कोई नहीं है

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  3. माँ की तुलना किसी से नहीं हो सकती...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  4. सच मे माँ बस माँ ही है

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  5. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना | बेहतरीन

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  6. Rewa.....so touching, i had tears while reading this beautiful poem.

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  7. माँ के प्यार में निस्वार्थ भाव को समेटती आपकी खुबसूरत रचना...

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