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Saturday, September 7, 2013

क्षणिक मुलाकात





   आज जब ये गीत सुना तो
 "लग जा गले की फिर ये हसीं
  रात हो न हो शायद फिर इस जन्म में
  मुलाकात हो न हो "

 तो
अचानक तेरी याद आ गयी
ऐसा लगा जैसे ये
गीत मेरी लिए ही बना हो ,
तुझ से वो पहली और
आखिरी मुलाकात
स्मरण हो आई

उस लम्हा जैसे वक़्त
रुक सा गया था
धड़कनें मद्धम गति
से चलने लगी थी

मन तो बार बार हो रहा था
की तुम्हें बस एक टक
देखती ही रहूँ
पर ये पलकें, इन
पलकों पर गुस्सा आ रहा था
कुछ देर बिन झपके
रह नहीं सकती क्या ?

जानते हो
तुमने जब बात शुरू की तो
लगा मैं दुनिया की सबसे
बेहतरीन आवाज़
सुन रही हूँ

तुम्हारे साथ उस दिन
कुछ देर का सफ़र
मेरे अब तक के
जीवन का सबसे रोमांचक
सफ़र था

और
ये सारे सुखद एहसास
बस तुम्हारे करीब
होने से हुए थे

उस छोटी सी मुलाकात में
ये अफ़सोस तो हमेशा रहेगा की
तुम्हें गले न लगा पाई ,
पर तुम कितने अच्छे इंसान हो
वो उस दिन पता चला

आज भी मुझे खुद पर
गर्व महसूस होता है की
मैंने तुम जैसे इन्सान को
दिलोजान से प्यार किया

रेवा


17 comments:

  1. कई गीतों के साथ यादें कुछ यूँ ही जुड़ जाती हैं, जैसा आपने लिखा है!

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  2. Sach! Kayi purane geet sunke lagta hai mano wo apne liye hi likhe gaye hon.....behed sundar rachana!

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  3. प्यार बस प्यार
    प्यार की हर बात अनोखी ...

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  4. बहुत सुन्दर रचना

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  5. ''रेवा'' जी बहुत ही सुन्दर जज़्बात ।
    कहीं ना कहीं, कभी ना कभी
    ऐसे वक़्त आते ही रहते हैं, कि
    ऐसे जज़्बात अपने आप ही मन से
    उमड़ पड़ते हैं ।
    बहुत बहुत सुन्दर

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  6. प्यार से लिखी गई प्यारी सी कविता

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  7. bahut khoobsurat ahsaas..prem me doobi huyi bahtarin rachna.

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  8. यादे हैं ना कब किसी पल दस्तक दे जाए कौन जानता हैं उम्दा रचना

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  9. कभी कभी हमें ऐसा लगता है की ये तो बस हमारे लिए ही बना है

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  10. क्षणिक मुलाकात का मीठा अहसास हमेशा साथ रहता है
    उस एहसास की मिठास की उम्दा अभिव्यक्ति

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  11. दूरियों का एक पाजिटिव पहलु भी हैं ,प्रेम में |
    अदभुत |

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