Followers

Sunday, April 27, 2014

अजनबी


ज़िन्दगी के सफर मे
मिल जातें है कई लोग ,
कुछ दिल से जुड़ जाते है
कई बस यूँही कुछ पल
साथ रहते हैं ,
पर ज़िन्दगी के हर मोड़ पर
चाहे कितनी भी
मुसीबतें आये ,

जीवन साथी सदा
साथ निभाते है न ?
लेकिन अगर वोही
अजनबियों जैसा व्यवहार करे तो ?
शायद तब भी
सफर ख़त्म तो नहीं होता
पर कठिन हो जाता है ,
"जैसे एक ही कमरे में
सालों से रह रहे दो लोग
अजनबियों से भी ज्यादा अजनबी "


रेवा

14 comments:

  1. शायद यही नियति है...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण...

    ReplyDelete
  2. शायद यह भी जिंदगी का द्रश्य है !
    new post रात्रि (सांझ से सुबह )

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (28-04-2014) को "मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी" (चर्चा मंच-1596) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  4. आपकी लिखी रचना मंगलवार 29 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  5. mann ko chu lene wali rachna....mann ki vyatha mann hi janta hai...

    ReplyDelete
  6. अजनबियों को शब्द देती सुंदर रचना

    ReplyDelete
  7. हाँ सच में एक अजीब सा नाता जुड़ जाता है

    ReplyDelete
  8. सत्य का ब्यान करती कविता |

    ReplyDelete
  9. सफर ख़त्म नहीं होता मुश्किल हो जाता है । बिलकुल सहमत हूँ ।

    ReplyDelete
  10. यह सफर अनवरत ऐसे ही चलता है , यह भी जीवन की एक सच्चाई है

    ReplyDelete
  11. बिल्‍कुल सच्‍ची बात ....

    ReplyDelete