आज न जाने मन को
क्या हुआ है ?
बस में ही नहीं आ रहा
कमबख्त ,
वो एहसास जिससे
मैं दूर चले जाना चाहती थी ,
आज रह रह कर परेशान
कर रहा है,
ये एहसासों कि दुनिया
कभी - कभी इतनी
जटिल क्यों हो जाती है ?
मैंने तो सोचा था
मेरा खुद पर ज़ोर है
किसी भी छण
कमज़ोर नहीं पडूँगी ,
कुछ भी हो जाये
इन एहसासो को अपने
आस - पास फटकने न दूंगी ,
पर आज
ऐसा महसूस हो रहा है जैसे
हवा के हर झोकें मे
तेरा ही स्पर्श है ,
साँसों में बस
तेरी ही खुश्बू है,
लगता है
तुझे महसूस
करने ही तो ये
चल रही है ,
कैसे जीयूं तुम बिन ?
यही समझाने आजा.......
मेरी धड़कनों को करार
देने आजा......
मौत तो रोज़ ही आती है
तुम बिन.......
एक बार जीने का भी
एहसास करा जा..............
रेवा
बहुत सुन्दर लाज़वाब जज़्बात बहिन जी
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना...दिल को छूते गहन अहसास...
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