दो पाटों के बीच पिसती औरत.……पति और बच्चे ....... न बच्चों कि उपेछा कर सकती है न पति की
परेशानी तो तब होती है जब एक ऐसा फ़ैसला करना पड़े....... जिसमे एक तरफ़ पति कि सेहत.......
जो अकेले रह कर नहि संभल रहि और दूसरी तरफ़ बच्चों कि खुशियां.......जो जगह नहीं बदलना चाहते....... दोनो को नज़रंदाज़ करना बहुत मुश्किल , एहमियत तो हमेशा सेहत को हि देनीं पडती है।
पर फिर रोज़ बच्चों के उदास उतरे हुए चेहरे देखकर खुद को कोसे बिन नहि रह पाती है वो माँ ।
चाहे गलती उसकी बिलकुल भि न हो फ़िर भी …………
ये तो एक मन कि अवस्था है , एक स्थिति है ,पर ऐसी कई मानसिक परेशानियों से आये दिन रूबरू
होना पड़ता है.…फिर भी उसे कोइ समझ नहि पाता , न हि वो मान - सम्मान मिल पाता है
जिसकी वो हक़दार है ,जब अपने हि घर पर उसे वो इज़्जत वो समझ नहि मिलती , तो हम समाज़
से कैसे अपेछा कर सकते हैं।
रेवा
बहुत सही
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (05-05-2014) को "खो गई मिट्टी की महक" (चर्चा मंच-1604) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Abhar Mayankji
Deleteसार्थक प्रस्तुति !
ReplyDeleteऐसी समस्यायें हमेशा आती रही है आती रहेंगी |किसका पडला भारी है उस स्थिति में ..इस पर विचारकर निर्णय लेना होगा !
ReplyDeleteNew post ऐ जिंदगी !
Shukriya Digvijay ji
ReplyDeleteइसी लिये औरत
ReplyDeleteपुरुष से श्रेष्ठ होती है
संतुलन करने के लिये
खुद ही अपनी
धुरी होती है :)
sahi kaha ....kai baar sthiti bahut mushkil rah jaise ho jati hai
ReplyDeletebhut achhi prastuti hai
ReplyDelete