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Wednesday, March 18, 2015

अंतर (लघु कथा )

अंतर (लघु कथा )


आज सुबह - सुबह फिर रमेश और रीना लड़ पड़े ....... काम को ले कर बात हो रही थी ,
रमेश ने कहा "तुम्हे अपना एक छोटा सा काम बोला था लैपटॉप पर सर्च कर के कर देना
पर तुमसे एक काम नहीं होता ,  करती क्या हो सारा दिन ?" बच्चे स्कूल चले जातें है ,
मैं ऑफिस....... बस पड़ी रहती हो सारे दिन सोफे पर टीवी के सामने ,
इतना सुनना था , रीना की आँखों से आंसू बहने लगे ,
सुबह ५ बजे से होता है उसका दिन शुरू और रात १० बजे ख़त्म …
गुस्से मे आज उसने सारे दिन का ब्यौरा बताया रमेश को,
और पूछा ''अब बोलो कब करूँ तुम्हारा काम ''!
तो रमेश ने मुँह बना कर टका सा जवाब दिया , " तुममे और इस काम वाली बाई मे कोई अंतर नहीं "
वो तो अनपढ़ है और तुम पढ़ी लिखी अनपढ़......................


रेवा टिबड़ेवाल







16 comments:

  1. इस पढ़ी लिखी अनपड़ के बिना शायद घर चलाना किसी को भी मुमकिन नहीं ... घर तो घर वो बाहर भी आसानी से संभाल सकती है अब इन पढ़े लिखे पति नुमा अनपडों को कौन समझाए ...

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  2. Samajh le aur soch badal ley tho kya baat hai....par hota kahan hai aisa

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  3. बहुत ही बढि़या रचना।

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  4. जिस काम के पैसे मिले बह कार्य़ ही काम में क्यँू गिना जाता हैं..............
    शायद हम निस्वार्य़ भाव से की गई सेवा दाम देने के काबिल नहीं हैं................

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  5. बिना मोल के किये कए काम तो बहुमूल्य हैं.
    नई पोस्ट : शब्दों की तलवार

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  6. यथार्थ व्यक्त करती लघु कथा..
    बहुत ही सुन्दर.. .

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  8. यथार्थ की बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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