नहीं चाहिये मुझे
तुम ,तुम और तुम
नही मानूँगी अब मैं
सबकी बात ,
सिर्फ़ इसलिए की मुझे
कहलाना है
एक अच्छी बहु
ननद ,भाभी और
वो तमाम ऐसे रिश्ते
जो बस चुप रहकर
सुनने और सही
होते हुए भी अपेक्छा न
करने से मिलते है ,
अब मुझे भी चाहिए
अपना आत्मसम्मान
अपने काम और बातों
मे आत्मसंतुष्टि ,
और अपनी पहचान..........
रेवा
रिश्ते अपनी जगह पर आत्मसम्मान जरूरी है ... अपनी पहचान जरूरी है ...
ReplyDeleteshukriya Digamber ji
Deleteआत्म सम्मान के बिना हर उपलब्धि बेमानी है ! सुन्दर रचना !
ReplyDeletesach kaha sadhna ji....shukriya
Deleteबहुत सुंदर ...ये तो अधिकार है और सबको मिलना ही चाहिए
ReplyDeleteshukriya Mohan ji
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (24-03-2015) को "जिनके विचारों की खुशबू आज भी है" (चर्चा - 1927) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
शहीदों को नमन करते हुए-
नवसम्वत्सर और चैत्र नवरात्रों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Abhar mayank ji. .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteshukriya Kamlesh ji
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteShukriya Chandra bhushan ji
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteShukriya sumanji
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति रेवाजी
ReplyDeleteकितना अजीब सा है न जो दुनिया को पहच्चन देती है उसकी खुद की पहचान लोग छीनना चाहते हैं।
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति।
Sach kaha abhishek ji
Deleteसुन्दर शब्द रचना.............. रेवा जी
ReplyDeleteshukriya Sawan kumar ji
Deleteखूबसूरत रचना।
ReplyDeleteShukriya vimmi ji
Deleteबहुत सुंदर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : बिन रस सब सून
shukriya rajeev ji
Deleteपता नहीं क्यों, लोग भूल से जाते हैं, कि आत्मसंतुष्टि, आत्मसम्मान - विहीन मानव अथवा मानवी किसी भी रिश्ते को सफलतापूर्वक निभाने में असमर्थ होते हैं. अच्छी बहु/ननद आदि के नाम पर रिश्तों की पूरक अपेक्षाओं का हनन, चुप्पी की प्रत्याशा... घोेेर विडंबना है.
ReplyDeleteअत्यंत सार्थक रचना रेवा जी
sahi kaha anusha ji.....hume jagna hi hoga....shukriya
Deleteअच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
ReplyDeleteshukriya sanjay
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