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Tuesday, July 31, 2018

मेरे हमसफ़र




सुनो
जब तुम गीली रेत पर
या गीली मिट्टी पर
चलते हो तो
मैं तुम्हारे पंजे के
निशान पर पैर रख कर
आगे बढ़ती हूँ,
ये मेरा खेल नहीं
बल्कि मुझे पाता है की
तुम मुझे सही
राह पर ले जा रहे हो
समुद्र के ऊँचे लहरों से
से बचाते हुए....

हमारे पथ पर आये सारे
गड्ढों और कटीली
झाड़ियों को हटाते
संकरी पगडंडियों से
होते हुए
मुझे मंजिल तक
पहुँचाओगे.....

परिस्थियाँ चाहे जैसी हों
जब साथ हैं तो पार
कर ही लेंगे हर मुश्किल
अगर तुम लड़खड़ाए
तो मैं थाम लूँगी
गर मैं गिरी तो
हाथ बढ़ा देना

वादा करो
बस यूँ ही हाथ
थामे रहोगे
जीवन के
हर सफ़र में !!!!


#रेवा
#हमसफ़र



Monday, July 30, 2018

बूंदों की पोटली






बूंदों की पोटली में 
बांध कर 
भेजी है मैंने 
प्यार की सौगात....
जब वो बूँद
पड़ेगी तेरे तन पर
तो महसूस होंगे
तुझे
मेरे एहसास......     

       
पर वादा करो
अगली बरसात के
साथ
लौटाओगे मुझे अपने
जज्बात.....


गर न भी मिल पाए 
हम तुम तो क्या 
यूँ ही बरसात के साथ
भेजते रहेंगे एक दूजे को
साथ होने का एहसास.......

#रेवा
#बरसात 

Friday, July 27, 2018

हादसा (कहानी )





आज विमल रीता को देखने आने वाला है .....रीता के घर में सुबह से तैयारी चल रही है , वो भी आज पार्लर से खास तैयार हो कर आई .....वैसे तो दिखने में  वो एक आम लड़की है पर बहुत सुलझी हुई और समझदार , पढ़ाई में  सामन्य पर बहुत क्लासेज कर रखी थी उसने , चाहे पैकिंग हो कंप्यूटर हो या ब्यूटी कोर्स , सब किया था उसने ...... घर मे वो सबसे छोटी थी सो खूब लाड़ प्यार मे पली बड़ी  .....बड़े दो भाई  बहन की शादी हो गयी और अब सबको को उसकी शादी की जल्दी थी .......इसी से उसकी पढाई पूरी होते ही लड़का ढूंढने लगे , विमल उसके पिता के दोस्त के दूर के रिश्तेदार का बेटा था वहीँ से उसके लिए रिश्ता आया था ।

रीता ने  विमल को पहली बार  देखा और वो उसके मन को भा गया...... ऊँचा कद सांवला रंग, क्लीन शेव न ज्यादा मोटा न पतला , रेड शर्ट और ब्लू जीन्स मे डैशिंग लग रहा था , अच्छे जॉब मे भी था ......बिज़नेस मैन रीता को जरा भी पसंद नहीं  , उसने अपने पापा को देखा था कैसे रात दिन बस काम मे लगे रहते  थे ...... हुँह उनकी भी कोई लाइफ होती है , न घर  आने का कोई फिक्स टाइम न जाने का , नही घूमने फिरने का समय।
इसी से उसे बिज़नेस मैन से शादी करने का बिलकुल भी मन नहीं था।

विमल को भी हलकी गुलाबी साड़ी मे लिपटी रीता एक नज़र मे पसंद आ गयी , घर वालों को तो पहले ही पसंद थी रीता .....बातों बातों मे  सब ने हस कर हामी भरी और दोनों को कुछ देर समय दिया ताकि वे भी आपस मे बात कर आश्वस्त हो जाएं.......बातों के दौरान पता चला की उनका नेचर काफी मिलता जुलता है एक दूसरे से........बस फिर क्या था रिश्ता पक्का हो गया , रीता इतनी खुश हुई  की उसे लगा उसका दिल उछल कर बहार आ जायेगा , पंडित को तुरन्त बुला कर तारिख निकलवाई गयी ,शादी की तारीख  कुछ जल्दी की निकली आगे मुहरत जो अच्छे नहीं थे।

इस वजह से सगाई ज्यादा दिन नहीं रही.....दोनों ज्यादा घूम फिर नहीं पाये  ३  ४ बार ही मिलना हो पाया , इन मुलाकातों  में  ये तो पता चल गया की विमल काफी आज़ाद ख्याल का और केयरिंग है।  समझदारी से पैसे खर्चा करता है......न बहुत ज्यादा बोलता है न कम......पर फिर भी दोनों एक दूजे को ज्यादा अच्छी तरह जान नहीं पाये ,ये बात रीता को खल रही थी। जब ये विमल से बोला तो उसने कहा  कोई बात नहीं अब तो सारी  ज़िन्दगी एक साथ रहना एक दूसरे को पूरी तरह समझने का बहुत वक्त मिलेगा , तो रीता आश्वस्त हो गयी।  देखते देखते शादी का दिन नजदीक आ गया .... खूब रची थी उसके हाँथों की मेहँदी , सबने चिढ़ाया बहुत प्यार करेगा विमल तुझे और ये सुन वो शर्म से लाल हो जाती , दूल्हा बना विमल भी बहुत जच् रहा था।  मंत्रो के बीच दोनों का विवाह राजी ख़ुशी संपन्न हो गया।  विदाई के समय माँ की सीख और आंसू पल्लू से बांध कर चली आई ससुराल .... एक बड़ी और एक छोटी ननद थी उसकी ..... छोटा सा परिवार , सारे नेग चार निबट गए और उसे उसके कमरे मे सजा धजा कर बैठा दिया गया।

हर लड़की की तरह इस रात को लेकर उसने भी अनेक सपने संजोये थे। वो  बेसब्री से विमल का इंतज़ार करते करते सतरंगी ख्वाबों मे खो गयी .....अचानक खट की आवाज़ हुई , वो समझ गयी विमल आ गए , उनके आने का आभास भर से वो अपने मे सिमट गयी।  उसे लग रहा था जैसे उसके गाल लाज से सुर्ख हो गए हैं, जबान तालु मे चिपक गयी है , थोड़ा डर भी लग रहा था।  विमल आया और चुप चाप पलंग पर बैठ गया ......काफी देर वैसे ही बैठा रहा , न कोई बात न चुहल बाज़ी न ही उसे देख मुस्कुराया ,न कुछ पूछा , फिर   कमरे मे इधर उधर घूमता रहा रीता को बहुत अजीब लग रहा था , अभी वो सोचने की कोशिश  ही कर रही थी की क्या हुआ विमल को ?  इतने मे ही उसने देखा की विमल एक उपन्यास लेकर मुँह दूसरी तरफ कर के लेट गया , रीता को धक्का सा लगा ......नाना प्रकार के बुरे ख्याल आने लगे .......कहीं ऐसा तो नहीं विमल अब उसको पसंद नहीं करता ,कहीं उसकी ज़िन्दगी मे कोई और तो नहीं।  कुछ देर वो चुप रही  , पर जब काफी देर बाद भी विमल वैसे ही लेटा रहा तो उससे चुप न रहा गया और पूछ ही बैठी  "क्या बात है काफी परेशान लग रहे हो " विमल ने कहा "कुछ नहीं बस ऐसे ही " रीता के २ ३ बार पूछने पर भी जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तो रीता को गुस्सा  आया और तकलीफ भी हुई पर , उसने एक बार और कोशिश की और विमल को कहा की "अब मैं आपकी जीवन भर की साथी हूँ , मुझसे नहीं बांटोगे अपनी परेशानी तो निभाना बहुत मुश्किल हो जायेगा , मुझे बीवी बाद मे पहले अपनी दोस्त समझो और फिर बताओ क्या बात है ,थोड़ी देर चुप रहने के बाद बिमल बोला थोड़ी लम्बी बात है ,रीता ने कहा कोई बात नहीं मैं सुनने को तैयार हूँ।

हम ३ दोस्त हुआ करते थे तीनों मिडिल क्लास फैमिली से थे , एक ही स्कूल मे बचपन से एक साथ पढ़ते थे हमारी दोस्ती पुरे स्कूल की शान थी , हर चीज़ मे हम तीनो आगे चाहे स्पोर्ट्स  हो डिबेट हो या कोई cultural activity हम तीनो का नाम पहले ही लिख दिया जाता  ,हमारी दोस्ती की मिसालें दी जाती ,हमे तीन बदन एक जान बोला जाता था ,हमारे माता पिता भी दोस्त या कह लो रिश्तेदार बन गए ,इस वजह से भी मिलने जुलने मे काफी आसानी हो जाती  ,यहाँ तक की होली हर साल हम सब एक साथ ही खेलते थे ,ठण्ड के समय पिकनिक और वैसे एक दूसरे के घर पढ़ने आया जाया करते । 'किशन हममे सबसे बड़ा था अपनी दो बहनों का इकलौता छोटा भाई पर उसके पापा नहीं थे ,दिखने मे वो राजकुमार सा लगता ,मुझे दोस्त और छोटे भाई सा प्यार देता बन्टी को एक बड़ा भाई और एक बड़ी बेहेन थी ,वो दिखने मे थोड़ा नाटा था पर सोने जैसा मन था उसका ।  हम दोनों उसे खूब चिढ़ाया करते थे ,मैं और बन्टी उम्र मे बराबर थे अच्छे दोस्त होते हुए भी लड़ लिया करते तब हमेशा किशन बीच बचाव करता।

ये उन दिनों की बात है जब हम ९वि क्लास मे थे ........ हमारी गर्मी की छुट्टियां चल रही थी , किशन  सुबह सुबह  आ धमका घर  ,मैं बाथरूम मे था दीदी ने उसे बैठाया और बोला "तेरे पसंद का 'नाश्ता है किशन खा ले "पर उसे जाने किस बात की जल्दी थी दीदी से पूछ मुझे बाथरूम  से जल्दी निकलने को कहने लगा ,मैं बहार आया तो बोला  " चल विमल घूमने चलते हैं यहीं कहीं पास मे ......... बन्टी को भी उसके घर से ले लेंगे ,मेरे मम्मी पापा घर पर थे नहीं सो मैं दीदी को बता कर निकल गया , हम दोनों बन्टी के घर गए पहले तो ताईजी ने मना कर दिया पर बहुत बोलने पर मान गयी , हम तीनो ने वहां नाश्ता किया फिर जल्दी वापस आने का बोल कर निकल गए , अब मसला ये था की जाना कहाँ है ?? किशन तीनों मे सबसे बड़ा था उसने कहा "पास ही एक डैम है बहुत नाम सुना है चल आज वहीँ चलते हैं"  पहले बन्टी और मैंने मना कर दिया पर किशन के बहुत बोलने पर चल दिए , अब आया सवाल कैसे जाएंगे डैम पैसे तो है नहीं पास मे तो किशन ने कहा उसके पास कुछ पैसे हैं जिसमे तीनो का आना जाना हो जायेगा।  फिर क्या था निकल पड़े हम मस्ताने , हमने एक ऑटो रिक्शा ली और रास्ते भर मस्ती करते  पहुँच गए डैम........ ज्यादा भीड़ नहीं थी उस दिन ,पहले हम वहाँ बैठे पानी का आनंद लेते रहे ,फिर किशन ने कहा "चल यार नहाते हैं " बन्टी ने उसका समर्थन किया ,पर मुझे पैर मे फोड़े हो रखे थे सो मैंने मना  कर दिया उनके बहुत कहने पर भी तैयार नहीं हुआ तो दोनो ने अपने कपड़े उतारे और मुझे कहा की तू यहीं बैठ हमारे कपड़े की रखवाली कर हम आते हैं ..............
कुछ देर वो किनारे पर ही पानी मे खेलते रहे फिर थोड़ा आगे गए ......  मैं बोर होने लगा और उन्हें आवाज़ देने लगा की आ जाओ अब , तो बोले रुक विमल आतें हैं थोड़ी देर मे बड़ा मज़ा आ रहा है वो आगे और आगे जाने लगे मैं किनारे से ही देख रहा था , थोड़ी देर मे वो मेरी नज़रों से ओझल हो गए मुझे लगा मुझे डरा रहे हैं जरूर पानी मे छिप गए होंगे , मैंने आवाज़ लगायी बोला की डांट पड़ेगी घर जा कर लेट हो रहा है अब आ जाओ , पर कोई जवाब नहीं आया ........ बार बार आवाज़ लगायी कोई जवाब नहीं  ,मैं अब डर गया बदहवास सा उन्हें आवाज़ लगाता रहा ,वहां आस पास कुछ लोग थे उन्हे बताया और मदद के लिए बोलता रहा , पर उन दोनों का कहीं पता न लगा ,मेरे पास पैसे भी नहीं थे घर कैसे जाता सबको कैसे बताता , फिर याद आया किशन के पास पैसे थे सो उनके कपडे लेकर उनकी जेब टटोली ........... तो कुछ पैसे मिले किसी तरह डर से कांपता गिरता पड़ता ऑटो कर के घर आया दीदी को सारी  बात बताई उनके कपड़े दिए ,दीदी ने तुरंत मम्मी पापा को फ़ोन किया ,वो लोग  घर आये और मुझे डांटने लगे ...... और फिर बात डैम भागे मुझे लेकर ,वहाँ गोताखोरों को ३ घंटे लगे उन्हें ढूंढने मे , उन्हें बहार निकला गया तो वे इस दुनिया से जा चुके थे ,गोताखोरों के अनुसार वो पानी के भंवर मे फंस गए थे ........... मैं एकदम भक्क रह गया बोली जैसे बंद हो गयी , मुझे घर लाया गया , माँ उस दिन मुझे छाती से लगा बहुत रोई बार बार भगवान का शुक्रिया अदा करती और मुझे प्यार करती ......पर मुझे तो जैसे कुछ समझ ही नहीं  आ रहा था  ,मैं पुरे ५ महीने स्कूल नहीं जा पाया उस हादसे ने मेरे मन पर गहरा असर किया था , मम्मी मुझे एक मिनट को भी अकेला नहीं छोड़ती थी ...... कितने दिनों तक मैं दहशत मे रहा माँ पापा के बीच सोता .......  रात को डर से उठ जाता मुझे हर जगह पानी ही पानी नज़र आता  ,ऐसा लगता था दोनों मुझे मदद के लिए बुला रहे हैं  , मैं जैसे ही हाँथ बढ़ाता मेरी नींद खुल जाती  , माँ पाठ पूजा गंडे ताबीज़ जाने क्या क्या करती कभी डॉक्टर कभी कुछ ......... फिर धीरे धीरे सबके प्यार से मैं सामन्य होने लगा।

सबसे बरस हाल किशन के परिवार का था...... उसके पिता भी नहीं थे ,मुझसे तो उनलोगो ने किनारा ही कर लिया था ....... तीनों परिवारों के बीच दरार आ गयी उन दोनों की फैमिली को लगता था इसमे मेरी गलती है , मुझे ये बात बहुत तकलीफ देती  ,मन करता था उनके घर जाने का पर नहीं जा पाता था ....... पर कहते हैं न समय हर बात का मरहम होता है , मैं भी धीरे धीर अपनी पढाई मे व्यस्त हो गया  ........उनके परिवार वाले भी अपना जीवन जीने लगे ........  लेकिन मैं कुछ भी भूल नहीं पाया ,सबको यहीं लगा की मुझे अब कुछ भी  याद नहीं , पर बचपन की यारी थी हमारी  आज भी उन दोनों का चेहरा मेरी आँखों के आगे घूमता रहता है  ,कभी कभी तो मुझे भी लगता है की शायद मैं जिम्मेदार हूँ इस सबका , और तब अपराधबोध से भर उठता हूँ.........या तो मैं भी चला जाता उनके साथ .........  या  उस दिन उन दोनों को पानी मे न जाने दिया होता ,किसी तरह रोक लेता तो आज वो मेरे साथ होते  ,मेरी शादी मे शामिल होते ........ आज का दिन मेरी ज़िन्दगी का कितना बड़ा और एहम दिन है बार बार मुझे उन दोनों की कमी खल रही है ...... ये कह कर विमल की आँखों से अश्रुधार बहने लगे बच्चों की तरह फफक फफक कर रोने लगा।
रीता चुपचाप सुनती रही , उसे समझ ही नहीं आया की वो क्या करे........ इतनी बड़ी बात कैसे रियेक्ट करे उसे कैसे सांत्वना दे। प्यार हर मर्ज़ को कम कर देता है ये सोच वो प्यार से विमल का सर सहलाती उसे समझाने लगी ..... कुछ एक घण्टे में  विमल शांत हुआ ....... तब तक भोर होने को थी ....ऐसी सुहागरात किसी की
नहीं होती होगी पर वो फिर भी खुश है विमल ने अपने दिल का गहरा राज़ उसे बताया और यही तो एक प्यार भरे रिश्ते की शुरुआत है।

रेवा



Thursday, July 26, 2018

किस्से




ये दुनिया जिसमें
हम सब सांस ले
रहे हैं
पेट भर खा कर
मौज़ मस्ती कर रहे हैं
वो दुनिया जाने
कितनी बच्चियों की /
औरतों की चीखों से 
भरी पड़ी हैं 

हर रोज़ एक नहीं
कई किस्से
हां ये किस्से ही तो हैं न...
जो सुनने पढ़ने को मिलते हैं
और हम
सुनते हैं पढ़ते हैं
गुस्सा आता है
ख़ून खौलता है
कैंडल मार्च होता है
और फिर भूल जातें है
चैन से सो जाते हैं
फिर अपनी रोज़ की
दिनचर्या में व्यस्त हो जाते हैं
और दूसरे किस्से का
इंतज़ार करते हैं

दोष किसी एक का नहीं
अकेले सिस्टम का नहीं
अकेले समाज का नहीं
पर कहीं तो कुछ है
कुछ नहीं बहुत कुछ है
जिसे दुरुस्त करना है

कभी सोचा है ऐसे हादसों से
बच्चियों की /लड़कियों की
पूरी ज़िंदगी कब्र में तब्दील
हो जाती है
माँ बाप की नींद हराम हो जाती है
पूरी ज़िंदगी वे ख़ुद को दोषी
मानते रहते हैं
कब तक ऐसा चलेगा ???
ये सवाल मेरा ख़ुद से भी है 
क्योंकि मैं भी कुछ कर नहीं रही
लिखने के सिवाय

पर तुम डरो ऐ दुनिया वालों
औरतें कहीं बच्चा पैदा करने
से ही इंकार न कर दें
लेकिन वो अगर ऐसा कुछ
करतीं हैं तो
ये उनके लिए अपनी जाति को
बचाने की एक पुरज़ोर
कोशिश होगी.....


#रेवा
#औरत

Wednesday, July 25, 2018

ये आंखें भीग जाती हैं


मुस्कुराने की चाह में जाने क्यों हर बार ये आंखें भीग जाती हैं .... तुझे सुकून से भरने जब जब तेरे माथे पर हाथ फेरती हूँ तो ये आँखें भीग जाती हैं ..... तुम जब किसी दिन खिल खिला कर हँसते हो न हंसना चाहती हूँ मैं भी पर जाने क्यों ये आँखें भीग जाती हैं ..... जब कभी लम्बे इंतज़ार के बाद तुम मुझे अपने आगोश में समेटते हो तो सुकून से भर जाती हूँ पर जाने क्यों ये आँखें भीग जाती हैं कभी कभी जब तुम मेरी सिर्फ मेरी परवाह करते हो मुझे बहुत ख़ास महसूस करवाते हो तो उस दिन ये आँखें भीगती नहीं अनायास ही बरसने लग जाती हैं ...... #रेवा

Tuesday, July 24, 2018

दरवाज़े की ओट



रोज़ जब तुम
ऑफिस के लिए
निकलते हो तो
मैं दरवाज़े की
ओट में खड़ी हो जाती हूँ

कहती कुछ नहीं तुमसे
पर मन ही मन
तुम्हारी सेहत
तुम्हारी सलामती की
दुआ मांगती हूँ
और ये विश्वाश
दिलाती हूँ तुमको की
हमारे संसार, बच्चों
और बड़ों का मैं
पूरा ध्यान रखूंगी
ताकि जब तुम बाहर रहो
तो सुकून से भरा रहे
तुम्हारा दिल और
ये विशवास  रहे मन में की
तुम शाम को
खिलखिलाते घर और
मुस्कुराते चेहरों को देखोगे

ये इसलिए नहीं करती की
तुम पुरुष हो और मैं स्त्री
कमाना तुम्हारा धर्म और
घर संभालना  मेरा कर्तव्य
बल्कि ये इसलिए करती हूँ
क्योंकि मैं तुमसे
बेइन्तहा प्यार करती हूँ।

#रेवा



Monday, July 23, 2018

मैं



जीवन की
हर ख़ुशी
तुम से शुरू होकर
तुम पर ही क्यों
खत्म हो ??

जब इस दुनिया में
हम अकेले आते हैं
और अकेले ही जातें हैं
तो फिर हर बार
हर जगह तुम क्यों ?

तुम तुम की रट छोड़ कर
मैं, अपने मैं से खुश
नहीं रह सकती क्या ??
आखरी अपने लिए
और अपने किये
हर काम के लिए तो
मैं ही जिम्मेदार हूँ न
फिर खुशी के लिए
तुम क्यों ?

चलो आज से
एक कोशिश करती हूं
तुम को आज़ादी
देती हूं
और मैं अपने मैं से
खुश रहने की शुरुआत
करती हूं ...


#रेवा 


Saturday, July 21, 2018

नयी यादें




जानते हो
तुम्हारी याद
बेतरह आती है
और मेरे ख्यालों में
हर मुलाकात
महकती रहती है

आँखों की बरसात
मिलवाती है उस
सूखी छतरी से
जिसके होते हुए
भीगना बहुत भाया था
हम दोनों को

कैफ़े का वो टेबल और
मेरी पसंदीदा कॉफ़ी
तेरे बिना
मुझे मुंह चिड़ाते हैं
पर तब  अनायास ही
कॉफ़ी से और इश्क हो जाता है

हाथों में कभी कभी
लगता है तेरे हाथ
रह गए हैं
बस ऐसे ही तुझसे जुड़ी
हर चीज़ को  महसूसते
मुस्कुरा कर चल पड़ती हूँ
नयी यादें बनाने ........


#रेवा








Friday, July 20, 2018

सुंदरता के मापदंड


सुंदरता के मापदंड
क्या हैं ? ???
ये मुझे कभी
समझ नहीं आया
पर जितना समझा 
उससे लगा
सूरत तो है ही
पर सीरत सबसे अहम है


ये दोनों का मेल इंसा को
इंसा बनाता है
अगर सूरत में कमी है
तो चल भी जाता है
पर सीरत का दर्जा
सबसे ऊपर....
लेकिन हँसी
आती है
ये बताते हुए की
आज सीरत  से
ज्यादा सूरत
को महत्व दिया जाता है

सुंदर सूरत हो बस
उसके बाद का सब
मैनेज हो जाता है
लगता है
आर्टिफीसियल दुनिया में
जीते जीते हमे
सब वैसी ही चीज़ें
पसंद आने लगी हैं......


रेवा


Thursday, July 19, 2018

कौन हूँ मैं ??



कौन हूँ मैं ??
एक नारी
बहुत आम सी
साँवले रंग वाली
गढ़ी गयी थी मैं
जिस गढ़त में
कई सालों तक
उसी के साथ चली
सीखी थीं जो बातें
उन्हें ही सच मानती रही
पर दुनिया कुछ और ही है
ये बात धीरे धीरे पता चली.....

तो मैंने दुबारा से ख़ुद को गढ़ा
एक नया चेहरा बनाया
जो मुझे बहुत पसंद आया
अक्षरों से दोस्ती की
और अपनी एक
नई दुनिया बनायी
जो इन किताबों से शुरू
होकर लफ़्ज़ों के रास्ते
तय करते हुए
कलम तक जाती है
और सुकून से भर
देती है मन ....


#रेवा

Wednesday, July 18, 2018

मेरा साया



दिन में वो साया
जो हल्की
धूप में
साथ नज़र आता है
वो अंधेरी रातों को
अकेला कर
कहाँ चला जाता है ??

उसके साथ रहते हुए भी
इतनी तन्हाई 
क्यों महसूस होती है ?
अपनी लकीरों में तो उसे
पाया है न
फिर भी क्यों दूर मुझसे
मेरा साया है ??

जब चाहती हूं
उसमे सिमटना
अपना दर्द बांटना
उसके बाजुओं को
अपने आंसुओं से भिगोना
तो वो क्यों नहीं मिलता ?

कहाँ चला जाता है
हर बार
मुझे यूँ अकेला कर
मेरा ही साया ??


#रेवा

Tuesday, July 17, 2018

उम्मीद




मत करो अब 
मुझसे वो पहली सी 
उम्मीद की 
नहीं दे पाऊँगी 
अब कुछ भी तुम्हें ...

जानते हो जब दर्द हदें  
तोड़ देता है 
तो बदले में 
बहुत कुछ ले भी लेता है 

मुस्कान तो आज भी 
खेलती है होठों पर 
लेकिन सुकून -ए- दिल 
नहीं है 

आंसुओं का इन आँखों में 
काम नहीं अब कोई 
पर आँखें अब शरारत से 
मुस्काती नहीं है 

गाती मैं आज भी हूँ 
पर मस्ती में 
गुनगुनाना भूल गयी हूँ 

आईना देख संवरती 
अब भी हूँ 
पर उसमे तुम्हारा अक्स देख 
शर्मा कर नज़रें नहीं झुकाती 

लटें अब भी उलझती हैं मेरी 
पर उन्हें सुलझाने के 
बहाने तुम्हें पास 
नहीं बुलाती 

बरसात मुझे अब भी 
उतनी ही पसंद है 
पर तुम्हारा हाथ पकड़े 
बूंदों को महसूस करने की 
इच्छा नहीं होती 

रिश्ता तो आज भी है 
पर परवाह और प्यार की जगह 
जिम्मेदारी ने ले ली है...
रेवा 

Monday, July 16, 2018

पता





स्त्री हैं हम
हमारा कोई
स्थायी पता नहीं होता
जहाँ हम पैदा
होतीं हैं वहां
ताउम्र रहतीं नहीं
जहाँ उम्र गुजारती हैं
वहां कुछ इस तरह
रहती हैं
जैसे पांव के नीचे
खाई हो जिसमें
हम धस नहीं सकती
और सर पर जो
नीला आसमान है
उस पर पंछी बन
उड़ भी नहीं सकती
ज़िन्दगी इनके
बीच तारतम्य बैठाते
गुज़र जाती है ....

#रेवा 
#स्त्री 

#अमृता की "खामोशी के आंचल में"
पढ़ते हुए

Saturday, July 14, 2018

पुल (१)




औरतें अकसर
पुल होती हैं
घर के तमाम
सदस्यों के बीच ...

बुजुर्ग बाप और
अधेड़ उम्र के बेटे के बीच
एक तरफ़ वो बहु
तो दूसरी तरफ बीवी
बातों को बिगड़ने से
बचाने की कोशिश में
कभी एक तरफ़ होती है
कभी दूसरी तरफ
फिर पुल बना
सुधारने की कोशिश
करती हैं घर का माहौल.....

किशोर होते बच्चे
जब नहीं समझते
अपने पापा की बात
और उनका गर्म खून
ज़ोर मरने लगता है.........
वहीँ दूसरी तरफ उनके पापा
देने लगते हैं
अपने समय की दुहाई तो
फिर बन जाती है पुल
बाप और बच्चों के बीच.......

हमारे अपने सपने
हमारी अपनी इच्छायें
जब सर उठाने लगती है तो
हम फिर एक पुल का
निर्माण करतीं है
घर के बजट
घर की ज़िम्मेदारी
और अपने सपनों के बीच.........

ऐसे ही न जाने
कितने अनगिनत पुलों
का निर्माण करते रहते हैं हम
लेकिन
हमारी बनायी पुलों की
एक ख़ासियत ये है की
ये बहुत मजबूत होती है
उन पुलों की तरह नहीं
जो भ्रष्टाचार की वजह से
भर भरा कर गिर जाती हैं .....


#रेवा 

Friday, July 13, 2018

मेरी जमा पूंजी


पापा आपके लिए

बचपन की यादें, कितनी प्यारी होती हैं न ..और जब  जनवरी का महीना आता है तो शिद्दत से बचपन और पापा याद आने लगते हैं ।
जबसे होश संभाला तब से शादी के बाद तक, माँ से ज्यादा पापा से जुड़ी रही उनकी सीख उनकी हिदायत उनकी रेसिपी।

एक इच्छा जाहिर करने की देर थी पापा मेरी हर ख़्वाहिश पूरी करने की कोशिश करते। चाहे वो साइंस पढ़ना हो या भूख हड़ताल कर कंप्यूटर क्लासेज करना । या फिर साईकल सिखना , या फिर वेस्टर्न ड्रेस पहनने की चाह जो उन्हें बिल्कुल पसंद न थी , दीदी ने इनमे से कुछ भी नहीं किया था।
धर्म युग नाम की एक मैगज़ीन आती थी तब, पापा हमेशा वो पढ़ कर रोचक बातें साझा करते थे मुझसे । मुझे गाने सुनना बहुत पसंद था , उस समय चित्रहार बुधवार और रंगोली रविवार सुबह आता था । रविवार को मैं और पापा नाश्ता बनाते थे, जैसे ही रंगोली शुरू होता एक आवाज़ आती " बेटा आजा तेरा प्रोग्राम शुरू हो गया है। हम दोनों फिर गाने सुनते और देखते थे ।

एक सफ़ेद मखमल का छोटा बैग लाये थे पापा , जब ठंड शुरू होती तो काजु किशमिश अखरोट आता था घर में , सब मिला कर हम तीनों भाई बहन में बराबर में बांट दिया जाता था, हमारे लिए वो अमृत था, मैं उसे पापा के दिये बैग में रखती और ठंड भर खाती थी , कभी कभी दीदी भईया के हिस्से से भी थोड़ा मार लेती थी ।

जब मैं बीमार पड़ती तो सारा घर सुबह सोता रहता पर पापा हॉर्लिक्स बना कर दे जाते थे मुझे, मजाल है भूखी रह जाऊं, एक बार उन्हें पता चला कि मैं कॉलेज भूखी गयी हूँ तो उन्होंने पूरा घर सर पर उठा लिया था।
पढ़ाई पूरी होने के बाद जब शादी की बारी आई तो उन्होंने बस एक सीख दी थी "बेटा नए माहौल में एडजस्ट होने में कम से कम 1 साल लग जाता है, कोशिश करोगी तो एडजस्ट कर लोगी । बस वही सीख पल्ले में बांध ली थी मैंने।
अब वो इस दुनिया में नही हैं, लगता है वो गए तो पीहर साथ ले गए ....पर उनका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ है और पापा मेरी यादों में हमेशा रहेंगे ।


#रेवा 

Thursday, July 12, 2018

प्यार का एक और रूप




होता है ऐसा भी
के कोई प्यार
जता जता के
हार जाता है

पर हम उससे
प्यार करते हुए भी
उसकी
कद्र नहीं कर पाते
और अपने प्यार की
गहराई
समझ नहीं पाते

शायद मन के
कोने में ये बात
रहती है की
वो कहाँ जाने वाला है
प्यार करता है न
जब चाहूँ मिल जायेगा
मुझे

पर जब हालात
बदलते  हैं
और वो प्यार वो साथ
छूट जाता है
तब
आंसुओं के सैलाब के
अलावा कुछ नहीं बचता

#रेवा 

Wednesday, July 11, 2018

विरह वेदना



आज मैं अपनी एक पुरानी रचना साझा कर रही हूँ .....


मैं खिड़की के कोने खड़े हो कर तेरा इंतज़ार करती
तेरे एक स्पर्श के लिए महीनों तड़पती 
तुझे याद कर के अपनी साड़ी का पल्लू भिगोती
इतना बेकरार हो जाती की तमाम कोशिशों के
बावजूद तेरी आवाज़ सुन कर गला भर आता

याद की इन्तहा होने पर
तेरे कपड़ों में पागलो की तरह तेरी खुशबू ढूंढती
और बिना बात ही हर बात पर रो पड़ती  ........

महीनों बाद जब तेरे आने की ख़बर मिलती
एक खुशी की लहर बन कर हर जगह फ़ैल जाती
मुझे लगता की मेरी खुशी, मेरी हँसी, मेरा चैन
मेरा सुकून,मेरी ज़िन्दगी आ रही है ....

पर आने के बाद तेरी वो बेरुखी, उफ्फ्फ !
तेरा मेरे एहसासों को मेरे जज्बातों को
मेरी तड़प को, नज़र अंदाज़ करना
मैं जैसी हूँ  वैसा ही छोड़ कर चले जाना .....

मुझे और भी आंसुओं मैं डुबो देता
लगता जैसे चारों तरफ़ एक शुन्य
एक सूनापन बिखर गया
जैसे जीवन सूना, आधारहीन हो गया

विरह में  वेदना सहना आसान है
पर मिलन में कैसे सहा जाए विरह वेदना ??

रेवा 




Tuesday, July 10, 2018

अपनी अदालत




मैं रोज़ ख़ुद से 
अनेकों युद्ध लड़ती हूँ
खुद को फिर अदालत में
खड़ा कर सवाल करती हूं
सवालों का सही जवाब
न मिलने पर
सजा सुना देती हूं
और ये क्रम
अनवरत चलता रहता है
जाने कब मैं अपने सवालों के
सही जवाब दूँगी और
खुद को अपनी
अदालत में बा इज़्ज़त बरी
कर पाऊंगी !!!

रेवा

Monday, July 9, 2018

दरदी बंधु



एक शख्स है ऐसा
जो सब रिश्ते नातों से परे
सबसे ऊपर है

मेरी खुशी में 
अपनी खुशी मिलाकर 
उसे दोगुना करने वाला
दुख में उसे बांट
व्यथा को कम करने वाला 

मेरी आंखें पढ़ कर
दिल का हाल
जानने वाला 

वो शख्स जो
मेरी आँखों में
आंखें डाल
मेरे गलत को
गलत बोलने की हिम्मत
रखने वाला

मेरे साथ हमेशा 
मज़बूत स्तम्भ की तरह 
खड़ा रहने वाला
मेरा हाथ थाम
मुझे आगे ले जाने वाला
लाख रूठ जाऊं
मुझे मना लेने वाला

ये शख्स और कोई नहीं
ये है मेरा दरदी बंधु
मेरा कान्हा .....


रेवा

Sunday, July 8, 2018

बूढ़ा पीपल






बहुत खुश था
वो गांव के
चौराहे पर खड़ा
बूढ़ा पीपल,

बरसों से खड़ा था अटल
सबके दुःख सुख का साथी
लाखों मन्नत के
धागे खुद पर ओढ़े हुए ,
कभी पति की लम्बी उम्र
कभी धन की लालसा
कभी क़र्ज़ वापसी
तो कभी अच्छी फ़सल
बेटी का ब्याह
बेटे की चाह
और न जाने क्या क्या

पर पहली बार
किसी ने अपने लिए
एक नन्ही कली की
मन्नत मांगी ,
तो पीपल को लगा
उसका जन्म सफल
हो गया इस धरती पर ....

लेकिन आज वो ज़ार ज़ार रोया
जब उस नन्ही कली को
चिथड़ों और
वह्शाना निशानों के साथ
अपने पास बैठ बिलखते
हुए देखा ......


रेवा 

Saturday, July 7, 2018

गिरगिट



बचपन में 
देखा था बड़े
गौर से गिरगिट को
रंग बदलते हुए
अचरज तो हुआ था
पर बहुत खुश भी हुई थी
ऐसा कुछ देखते हुए 

अब बड़े गौर से
देखती हूँ
मनुष्यों को रंग
बदलते हुए
कितानी जल्दी
इतने तरह के
रंग बदल लेते हैं 
माशाल्लाह 

पर खुशी बिल्कुल
नहीं होती
एक बात बताओ ज़रा
इतने गिरगिटिया कैसे
हो लेते हो !!!


रेवा

Friday, July 6, 2018

काश पापा आज आप होते

काश मैंने आपके सामने
लिखना शुरू किया होता
काश मैं अपनी
पहली किताब
आपको भेंट कर पाती
काश आप अख़बार में  
अचानक  मेरी लिखी 
कविता पढ़ते और
सबको पकड़ पकड़
कर बताते
मेरी हर उपलब्धि पर 
मुझे फ़ोन कर बधाई देते
जानते हैं पापा 
वैसी ख़ुशी 
दुनिया में  किसी को
नहीं होती है
काश आपके चेहरे पर
मेरे लिए वो गर्व की
रेखाएं मैं देख पाती .....
काश पापा आज आप होते !!


रेवा

Thursday, July 5, 2018

ग़रीब जो ठहरी


रोज़ सुबह उठकर
आंखों की रौशनी से
भगवान के आगे 
दीप जलाती है वो
ताकी ज़िन्दा रहे 
उसका इकलौता बच्चा
ग़रीब जो ठहरी

केवल पानी से करती है
पेट भर नाश्ता
और निकल पड़ती है
किसमत के पत्थर को
मजबूरी के हथौड़े से 
तोड़ने  
ग़रीब जो ठहरी 

बरसात में टपकती है 
जब उसकी झोपड़ी
हाथों के खुरदुरे बिस्तर पर  
मैली आँचल के छत्ते तले
सुलाती है बचाकर बूंदों से 
अपने मासूम बच्चे को
वो एक माँ भी है 
पर ग़रीब जो ठहरी 

न रगों में अब लहू है
न जिस्म में कुछ पानी
न आंखों में आंसू हैं 
न पुतलियों पर नमदारी 
वो तो बस 
गरीबी पहनती है 
गरीबी खाती है
गरीबी ओढ़ती है 
गरीबी बिछाती है 
और एक दिन
ग़रीब संग गरीबी मर जाती है 

रेवा 

Wednesday, July 4, 2018

झील के इस पार



याद है तुम्हें 
वो झील के
किनारे की पहली
मुलाकात
कितना हसीं था न
वो इत्तेफ़ाक

तुम किसी और शहर के
मैं कहीं और की
अपने अपने शहरों से दूर
मिले थे किसी और जगह पर
देखा नहीं कभी एक
दूजे को
पर बातों ही बातों में की थी
अनगिनत मुलाकात
एक ख़्वाहिश
जरूर थी दिल में
एक बार
तुम्हें इन नज़रों से
निहारूँ तो सही

उस दिन लगा
ऊपर वाले ने
सुन ली मेरे दिल की पुकार
तुम और मैं मिले थे फिर
झील के इस पार

भरी भीड़ में पहचान लिया था
तुमने मुझे
और फिर पी थी हमने
कॉफी बातों के साथ
कुछ देर में चले गए तुम
और मैं भी
पर वो शाम
वैसी की वैसी टंगी है
आज तक मेरे दिल की
दीवार पर
जब मन होता है
उतार कर जी लेती हूं
और एहसासों का इत्र लगा
टांग देती हूं फिर उसी जगह !!


रेवा

Tuesday, July 3, 2018

बाँसुरी



वो जो कन्हैया है न
जो बंसी बजाता है
उसे उसकी बाँसुरी
कितनी पसंद है
प्राणो से प्यारी है
यहाँ तक की राधा और
उनके बीच भी वो रहती है

पर वो बाँसुरी जब बनती है
उसे कितनी मुश्किलों
से गुजरना पड़ता है
उसे काटा जाता है
आकार दिया जाता है
फिर उसके तन पर छेद
किये जाते हैं
उसे चमकाया
जाता है
तब कहीं वो जा कर
कन्हैया के होठों
से लगती है

मेरे भी इम्तिहान का
समय चल रहा है
पर मैं भी चमक कर
एक दिन उस बाँसुरी वाले की
प्रिय बन ही जाउंगी ......

रेवा


Monday, July 2, 2018

मेरे हिस्से


मेरे हिस्से आता है 
सिर्फ़ देना
अपनी मीठी बोली
अपना प्यार
अपना समर्पण
अपना परिश्रम
अपना सारा समय
अपनी हंसी
पर मेरी भी कुछ
कमजोरियां हैं
मन के कुछ निग्रह हैं
क्या तुम उसे
नज़रंदाज़ नहीं कर सकते
जब इतना कुछ लेते हो
बदले में कुछ न दो
पर सम्मान तो
दे ही सकते हो न  !!!


रेवा 

Sunday, July 1, 2018

महीने का हिसाब



चाहती हूँ मैं भी
नज़्म लिखना
प्रेम में पगी
जीवन से भरपूर
एहसासों में डूबी
भावनाओं से परिपूर्ण
जो पढ़ते ही ले जाए
किसी और दुनिया में

पर जब जब लिखने
बैठती  हूँ
बेख़याली में
लिखने लगती हूँ
महीने का हिसाब

कितना किसको दिया
कितना बाकी है
बजट के अन्दर
सब सँभाल पा रही हूँ
या फिर इस महीने भी
महँगाई के डंडे
और ज़रूरतों से
ओवर बजट की मार
झेलनी पड़ेगी

डूब जाती हूँ फिर
इस सोच में
क्या इस बार भी
कहा सुनी हो जाएगी
खर्च को लेकर ?
या शांति से निपट जायेगा
इस महीने का हिसाब किताब
पर हर महीने
इसी सवाल में अटकी रहती हूँ

चाहती हूँ मैं भी
नज़्म लिखना
पर बेख़याली में
लिखने लगती हूँ
महीने का हिसाब !!!

रेवा