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Thursday, July 26, 2018

किस्से




ये दुनिया जिसमें
हम सब सांस ले
रहे हैं
पेट भर खा कर
मौज़ मस्ती कर रहे हैं
वो दुनिया जाने
कितनी बच्चियों की /
औरतों की चीखों से 
भरी पड़ी हैं 

हर रोज़ एक नहीं
कई किस्से
हां ये किस्से ही तो हैं न...
जो सुनने पढ़ने को मिलते हैं
और हम
सुनते हैं पढ़ते हैं
गुस्सा आता है
ख़ून खौलता है
कैंडल मार्च होता है
और फिर भूल जातें है
चैन से सो जाते हैं
फिर अपनी रोज़ की
दिनचर्या में व्यस्त हो जाते हैं
और दूसरे किस्से का
इंतज़ार करते हैं

दोष किसी एक का नहीं
अकेले सिस्टम का नहीं
अकेले समाज का नहीं
पर कहीं तो कुछ है
कुछ नहीं बहुत कुछ है
जिसे दुरुस्त करना है

कभी सोचा है ऐसे हादसों से
बच्चियों की /लड़कियों की
पूरी ज़िंदगी कब्र में तब्दील
हो जाती है
माँ बाप की नींद हराम हो जाती है
पूरी ज़िंदगी वे ख़ुद को दोषी
मानते रहते हैं
कब तक ऐसा चलेगा ???
ये सवाल मेरा ख़ुद से भी है 
क्योंकि मैं भी कुछ कर नहीं रही
लिखने के सिवाय

पर तुम डरो ऐ दुनिया वालों
औरतें कहीं बच्चा पैदा करने
से ही इंकार न कर दें
लेकिन वो अगर ऐसा कुछ
करतीं हैं तो
ये उनके लिए अपनी जाति को
बचाने की एक पुरज़ोर
कोशिश होगी.....


#रेवा
#औरत

8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-07-2018) को "कौन सुखी परिवार" (चर्चा अंक-3045) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
    ---------------

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  2. बेहतरीन रचना रेवा जी

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    Replies
    1. बहुत शुक्रिया Anuradha जी

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विजय दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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