भगवान ने ये रीत क्यों बनायीं
बेटियाँ क्यूँ होती हैं पराई ,
बाबुल के आंगन को कर के सुना
क्यूँ बन जाती हैं किसी और के घर का गहना ,
खुद तो बन दुल्हन
आ गयी पिया के देस ,
पर जब बिटिया को
भेजने की बारी आयेगी परदेस
तो कैसे सहूंगी यह ठेस ,
किसकी जिद्द पूरी करुँगी
किसे दूंगी उपदेश ?
कैसे समझाऊँगी उसे
जब वो कहेगी
"माँ मुझे मत भेज "!
रेवा
रेवा
दिल को छुते भाव
ReplyDeleteमार्मिक रचना
ReplyDeleteमाँ का दर्द और उनके भाव समेटे हुवे
जब वो कहेगी
ReplyDelete"माँ मुझे मत भेज"
तब समझाना ....
भगवान ने नहीं ,
ये रीत हम
इंसानों ने बनायीं ....
ये रीत हम
ReplyDeleteइंसानों ने बनायीं ....
विभी दीदी सही कहती है
मर्मस्पर्शी सार्थक शब्द रचना...!!
ReplyDeleteखूबसूरत भाव लिए हुए ....हर लड़की की सोच को साँझा किया है आपने ...आभार
ReplyDeleteसच्ची....बेटी होने में या बेटी की माँ होने में सिर्फ यही एक बुरी बात है....
ReplyDeleteसुन्दर सी रचना रेवा.....मन को छू गयी.
सस्नेह
अनु
bahut khubsurat bhav liye hue behtreen rachna
ReplyDeleteबहुत ही भावविभोर करती हृदयस्पर्शी प्रस्तुति है.
ReplyDeleteप्रस्तुति के लिए आभार रेवा जी.
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ReplyDeleteकुछ भी करो भेजना तो पड़ता ही है और फिर पास रह जाती है यादें या यूं कहें की यादों भरा बचपन और वह यह गाती हुई निकल जाती हैं कि हम तो चले परदेस हम परदेसी होगाए छूटा पाना देस हम परदेशी हो गए हो... :-)भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteUnknown......."mann ko chhu gayi ye rachna...bahut khoob Rewa"..........apne ye comment likh kar delete kyu kar diya...samajh nahi aya ???
ReplyDeletefir se likh rahi hu...bahut khoob....keep writing..lots of love from your vasu di.
ReplyDeleteVasu di....welcome to my blog...and thank u so much..
Deleteaap sabka bahut bahut shukriya
ReplyDeleteबेटी को अपने घर खुश देख मान भी खुश होती है .... यह भाव हर बेटी की माँ के मन में हमेशा उथल पुथल मचाता है
ReplyDeletesangeetaji shukriya
ReplyDeletehmmmmmmmm.....beti ..meri bhi ek ...aaj hi vah din aankho ke samne la diya jab kahti hai ..mujhe mat bhej ...
ReplyDeletedil ko chuti ..aankhe nam karti ...shbd nhi kya kahun main
main bhi baap hun rewa...
dil ka tukda ..hai meri gudiya