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Sunday, September 16, 2012

माँ मुझे मत भेज

भगवान ने ये रीत क्यों बनायीं 
बेटियाँ क्यूँ होती हैं पराई ,
बाबुल के आंगन को कर के सुना 
क्यूँ बन जाती हैं किसी और के घर का गहना ,
खुद तो बन  दुल्हन 
आ गयी पिया के देस ,
पर जब बिटिया को 
भेजने की बारी आयेगी परदेस 
तो कैसे सहूंगी यह ठेस ,
किसकी जिद्द पूरी करुँगी 
किसे दूंगी उपदेश ?
कैसे समझाऊँगी उसे 
जब वो कहेगी 
"माँ मुझे मत भेज "!


रेवा 




18 comments:

  1. मार्मिक रचना
    माँ का दर्द और उनके भाव समेटे हुवे

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  2. जब वो कहेगी
    "माँ मुझे मत भेज"
    तब समझाना ....
    भगवान ने नहीं ,
    ये रीत हम
    इंसानों ने बनायीं ....

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  3. ये रीत हम
    इंसानों ने बनायीं ....
    विभी दीदी सही कहती है

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  4. मर्मस्पर्शी सार्थक शब्द रचना...!!

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  5. खूबसूरत भाव लिए हुए ....हर लड़की की सोच को साँझा किया है आपने ...आभार

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  6. सच्ची....बेटी होने में या बेटी की माँ होने में सिर्फ यही एक बुरी बात है....
    सुन्दर सी रचना रेवा.....मन को छू गयी.
    सस्नेह
    अनु

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  7. bahut khubsurat bhav liye hue behtreen rachna

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  8. बहुत ही भावविभोर करती हृदयस्पर्शी प्रस्तुति है.
    प्रस्तुति के लिए आभार रेवा जी.

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  9. This comment has been removed by the author.

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  10. कुछ भी करो भेजना तो पड़ता ही है और फिर पास रह जाती है यादें या यूं कहें की यादों भरा बचपन और वह यह गाती हुई निकल जाती हैं कि हम तो चले परदेस हम परदेसी होगाए छूटा पाना देस हम परदेशी हो गए हो... :-)भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  11. Unknown......."mann ko chhu gayi ye rachna...bahut khoob Rewa"..........apne ye comment likh kar delete kyu kar diya...samajh nahi aya ???

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  12. fir se likh rahi hu...bahut khoob....keep writing..lots of love from your vasu di.

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    1. Vasu di....welcome to my blog...and thank u so much..

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  13. बेटी को अपने घर खुश देख मान भी खुश होती है .... यह भाव हर बेटी की माँ के मन में हमेशा उथल पुथल मचाता है

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  14. hmmmmmmmm.....beti ..meri bhi ek ...aaj hi vah din aankho ke samne la diya jab kahti hai ..mujhe mat bhej ...

    dil ko chuti ..aankhe nam karti ...shbd nhi kya kahun main
    main bhi baap hun rewa...
    dil ka tukda ..hai meri gudiya

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