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Friday, September 21, 2012

कहाँ से ?(माँ की पीड़ा)

रोज़ की तरह
कल फिर फ़ोन आया माँ का 
पर कल कुछ बात करने के बाद 
रो पड़ी ,
50 सालों का साथ था 
माँ और पापा का 
चले गए पापा  ,
उन्हें अकेला तन्हा छोड़ कर 
कहतीं है ,
"तुम सब ठीक बोलते हो 
मन को शांत तो रखना ही होगा 
पर कैसे भूल जाऊं उन्हें ,
हर तीज त्यौहार पर 
दिल रो उठता है मेरा ,
कुछ उनके पसंद की चीज़ 
खाने बैठूं , तो खाया नहीं जाता 
हर बात में उनकी याद आती है 
क्या करू उन यादों का ,
कहाँ से लाऊं इतनी शक्ति 
कैसे भूल जाऊं सबकुछ ,
इतने सालों में हर कुछ 
बाँटा है उनके साथ ,
लड़ाई झगड़े , हँसी ख़ुशी हर कुछ ,
अब इतना खाली सा हो गया है अचानक "
माँ की पीड़ा का ,
इन बातों का क्या जवाब दूँ 
कहाँ से लाऊं वो शब्द वो साथ 
जो माँ को तस्सली दे सके 
कहाँ से ?                    

रेवा   

17 comments:

  1. ek aur mann ko chhu lene wal rachna. Rewa..ye sachhai bahut dukhdayi hai. Maa ke jane ke baad mere papa bhi behad akele ho gaye the..bahut purana satha tha un dono ka bhi...thanks for writing such a touching poem......vasu

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  2. आपकी कविता में भावों की गहनता व प्रवाह के साथ भाषा का सौन्दर्य भी है .उम्दा पंक्तियाँ .

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  3. अपना आप ही सहायक होता है..और सारे शब्द विफल

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  4. मन को छूते शब्‍द ... भावमय करती अभिव्‍यक्ति ।

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  5. मन को द्रवित करते मार्मिक भाव!!!

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  6. पीड़ा ही पीड़ा हैं .....एक साथ छूट जाने से वो अधूरापन अब कभी नहीं भरेगा

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  7. माँ की पीड़ा का अंदाजा तो कोई नहीं लगा सकता ....
    मेरी माँ पहले चली गई थीं .... पापा बाद में गए ....
    अकेलापन को कोई शब्द नहीं भर सकता ........

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  8. बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता।


    सादर

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  9. ऐसे दुख में सांत्वना देना भी मुश्किल लगता है!

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  10. कोई भी शब्द नहीं है मेरे पास रेवा जी .........अपना तो हर मौके पर याद आता ही है

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  11. माँ की पीड़ा और अकेलेपन को आपकी संवेदना ने शब्द दे दिए. बहुत मार्मिक रचना, शुभकामनाएँ.

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  12. सारे शब्द खोखले लगते हैं कभी कभी....
    माँ के और तुम्हारे मन की भी पीढ़ा पढ़ सकती हूँ...महसूस कर सकती हूँ...
    बहुत कोमल अभिव्यक्ति रेवा...
    ढेर सा प्यार ...
    अनु

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