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Saturday, July 20, 2013

नखरालू बादल

ये बादल भी न बिलकुल
तुम्हारी तरह नखरालू हैं
अपने होने का एहसास कराते हैं
फिर बिन बरसे चले जातें हैं ,

आसमान पर रोज़ छा जातें हैं
लगता है बस अब बरसे
तब बरसे
पर दिन ढलते ढलते
रूठ कर छिप जातें हैं ?

फिर से आ जाती है
हलकी सी धुप,

क्यों तड़पाते हो इतना ?
कभी तो टूट कर बरसो
तपते मन की तृष्णा शांत करो ,

देखो अब न बरसे
तो रूठ कर चली जाउंगी
फिर न कहना
" मेरे प्यार की बरसात मे
  भिगो न आज "

रेवा



5 comments:

  1. True picture of clouds.very nice.
    Vinnie

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  2. सुन्दर रचना ....बहुत सही कहा आपने ...

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  3. सुन्दर ,सटीक और सार्थक . बधाई
    सादर मदन .कभी यहाँ पर भी पधारें .
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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  4. बहुत सुन्दर प्रेमभाव लिए अभिव्यक्ति

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