इंतज़ार कि घड़ियाँ
गिनते - गिनते ,
प्रीत कि ओढ़नी ओढ़े
मन दुल्हन सा हो गया है
मिलन कि आस लिए
बस दरवाज़े पर
टक - टकी लगाये
पहरा देते रहते हैं
मेरे एहसास ,
अश्रु अब पलकों के
सीपों में बंद
मोती हो गयें हैं ,
जो बस पिया के
गले का हार
बनने को आतुर हैं
आह ! ये इंतज़ार भी
कभी गुदगुदाता है
कभी रुलाता है
पर कभी - कभी
जीवन को दोबारा
प्यार से भर देता है !!!
रेवा