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Tuesday, January 28, 2014

मन कि भूख


होने को ये एक छोटा सा वाक्या है...............पर मैं
समझ नहीं पा रही हूँ , हंसु या रोऊँ। लोगों कि सोच सही है या मैं गलत ,
किसी ने पूछा मुझसे , कि क्या मैं कवितायेँ लिखती हूँ , मेरे हाँ
कहने पर उन्होंने बोला......... इस से तुम्हे  कितनी आमदनी होती है ?
मैं सकपका गयी .........समझ नहीं आया क्या जवाब दूँ,
उन्हें क्या बताऊ... कि मैं पेट कि भूख मिटने के लिए नहीं  बल्कि
अपने मन कि संतुष्टि अपने मन कि भूख मिटने के लिए लिखती हूँ।

रेवा


12 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार आपका।

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  2. samaj men aaj sabkuchh paison se taulaa jaa raha hai ....apani apni nazariaya .
    वसन्त का आगमन !

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  3. सब की अपनी अपनी सोच है...

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  4. दूसरे की सब बातों पर सोचा नहीं करते बहन
    ऐसे समय के लिए ही तो ऊपर वाले ने दो कान दिये हैं
    जिनका रास्ता ना तो दिल तक और ना दिमाग तक जाता है
    हार्दिक शुभ कामनाएँ

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    1. koshish tho karti hun didi par nahi hota hamesha aise

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  5. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...

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  6. अब आज के दौर में लोग और क्या सोचेंगे। पैसा नही मिलता तो वह काम उनकी समझ से बेकार है। जॉइन द गैंग।

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  7. bhut achhi baat likh di hai aapne reva ji

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