होने को ये एक छोटा सा वाक्या है...............पर मैं
समझ नहीं पा रही हूँ , हंसु या रोऊँ। लोगों कि सोच सही है या मैं गलत ,
किसी ने पूछा मुझसे , कि क्या मैं कवितायेँ लिखती हूँ , मेरे हाँ
कहने पर उन्होंने बोला......... इस से तुम्हे कितनी आमदनी होती है ?
मैं सकपका गयी .........समझ नहीं आया क्या जवाब दूँ,
उन्हें क्या बताऊ... कि मैं पेट कि भूख मिटने के लिए नहीं बल्कि
अपने मन कि संतुष्टि अपने मन कि भूख मिटने के लिए लिखती हूँ।
रेवा
सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपका मैं अपने ब्लॉग ललित वाणी पर हार्दिक स्वागत करता हूँ मैंने भी एक ब्लॉग बनाया है मैं चाहता हूँ आप मेरा ब्लॉग पर एक बार आकर सुझाव अवश्य दें...
jaroor lalit ji
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार आपका।
ReplyDeletesamaj men aaj sabkuchh paison se taulaa jaa raha hai ....apani apni nazariaya .
ReplyDeleteवसन्त का आगमन !
सब की अपनी अपनी सोच है...
ReplyDeleteदूसरे की सब बातों पर सोचा नहीं करते बहन
ReplyDeleteऐसे समय के लिए ही तो ऊपर वाले ने दो कान दिये हैं
जिनका रास्ता ना तो दिल तक और ना दिमाग तक जाता है
हार्दिक शुभ कामनाएँ
koshish tho karti hun didi par nahi hota hamesha aise
Deleteभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...
ReplyDeleteshukriya ravikar ji
ReplyDeleteVery true!
ReplyDeleteअब आज के दौर में लोग और क्या सोचेंगे। पैसा नही मिलता तो वह काम उनकी समझ से बेकार है। जॉइन द गैंग।
ReplyDeletebhut achhi baat likh di hai aapne reva ji
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