नज़रें कितना कुछ बयां करती हैं
कितने एहसास भरे रहते हैं उनमें
कुछ एहसासों को शब्दों में
लिखने की एक कोशिश
विरहन
जब अपने प्रियतम
के आने की खबर पा कर
उसके पास जाती है
और उसे नज़र भर देखती है
प्यार
जब पति पत्नी के
कंधे पर प्यार से हाथ
रखता है और पत्नी
उसे निहारती है
व्यथा
जब एक विधवा
दूसरी को देखती है
अपने जैसे दुःख से
गुजरते हुए
ममता
माँ रोती भी है
हंसती भी है
जब बेटी दुल्हन
बनती है
संतुष्टि
जब अपने भूखे बच्चे को
खाना खाते हुए
माँ देखती है
बचपना
बरसात को देख
भीगते उछलते
बड़ी उम्र के लोगों की
शरारती नज़रें
तृप्ति
भूखे की थाली में
भोजन और प्यासे
को पानी
वो तृप्ति भरी नज़र
कुटिल
ये सबसे पहले
नज़रें बता देती हैं
शब्द और कार्य
देखने की जरूरत
ही नहीं पड़ती .......
रेवा