तुम तो अंतर्यामी हो ना
सब जानते समझते हो
रोज़ तुम्हारी पूजा करते हैं सब
तुमसे सलामती की दुआ मांगते हैं
अपने परिवार की सुरक्षा
उनकी सेहत उनकी ख़ुशियाँ मांगते हैं
मैं भी ऐसा ही तो करती हूँ,
बचपन से
जबसे माँ ने सिखाया की
किसी और से कुछ नहीं मांगना
सिवा तुम्हारे
तुम ही हमारे माता पिता हो
तुमसे मांगने में कैसी शर्म
पर अब तो लगता है
तुम भी सुनते नहीं
सब यही बोलते हैं कर्म करो
ऐसा नहीं की कर्म नहीं करती
पर सुनवाई नहीं होती
तुम्हारे दरबार में
तुम्हारे ठेकेदारों के भी
पाँव पड़ती हूँ की
शायद वो मेरी सिफारिश
कर दें तुमसे
तुम मेरी न सही
तो उनकी ही सुन लो
पर लगता है तुम भी घबरा
गए हो इतने मांगने वालों से
किस किस की सुनोगे
तो चलो आज से मैं
नहीं मांगती कुछ भी
जब अंतर्यामी हो ही
तो जानते ही हो सब
तुम ज़िद्दी भी हो
तो तुम्हारी सृजन
यानि मैं भी ज़िद्दी
देखते हैं तुम्हारे दरबार में
इन्साफ़ के क्या पैमाने हैं ??
रेवा
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व शरणार्थी दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteshukriya
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