जब मन दर्द से भरा हो
तब सांस भी कांच के
टुकड़ों से चुभते हैं ......
काजल भी बग़ावत
पर उतर आते हैं
आंसुओं को
रोकने में असमर्थ ....
वैसलीन के बावजूद
होंठ सूख जातें हैं और
मुस्कुराने से इनकार करते हैं
गाने के बोल
कानों में ज़हर घोलते हैं ....
ऐसे मे कभी कभी
संतुष्टि दे जाती है किताबें
जिसे पढ़ कर जब
सीने पर रखो तो
लगता है
ये सारा दुख
खुद मे समा रहीं है
और भर रही हैं
हृदय में शब्द दर शब्द
सुकूं !!!
रेवा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.06.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3008 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
शुक्रिया dilbag जी
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