तुम कभी नहीं
जान सकते
तुम में तुम्हें
कितना ढूंढती हूँ मैं
तुम तो जैसे
खो से गए हो
खुद में
रोज़ तुम्हें
समझाते जीवन के
मायने बताते
तुम्हें तुम से वापस
मिलाने की कोशिश में
मैं, मैं रह नहीं गयी
ये सारी कोशिशें .......
जीवन जीने की जंग
सब अपनी जगह सही है
पर कभी कभी मेरा
मैं तुम्हारे तुम से
मिलना चाहता है
और करना चाहता है
अनगिनत बातें
बातें प्यार की
बातें मेरी और तुम्हारी
आँखों में आँखें डाले
देखना चाहता है
सिर्फ तुम्हें
बांहों में बांहें डाले
महसूस करना चाहता है
सिर्फ तुम्हें
मैं नहीं चाहती यूँ ही
दुनिया से रुखसत होना
जीना चाहती हूँ बार बार
और मरना भी चाहती हूँ
बार बारे
पर तेरे साथ तेरी बांहों में !!!
रेवा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.06.18 को चर्चा पंच पर चर्चा - 3001 में दिया जाएगा
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद
shukriya
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