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Tuesday, July 17, 2018

उम्मीद




मत करो अब 
मुझसे वो पहली सी 
उम्मीद की 
नहीं दे पाऊँगी 
अब कुछ भी तुम्हें ...

जानते हो जब दर्द हदें  
तोड़ देता है 
तो बदले में 
बहुत कुछ ले भी लेता है 

मुस्कान तो आज भी 
खेलती है होठों पर 
लेकिन सुकून -ए- दिल 
नहीं है 

आंसुओं का इन आँखों में 
काम नहीं अब कोई 
पर आँखें अब शरारत से 
मुस्काती नहीं है 

गाती मैं आज भी हूँ 
पर मस्ती में 
गुनगुनाना भूल गयी हूँ 

आईना देख संवरती 
अब भी हूँ 
पर उसमे तुम्हारा अक्स देख 
शर्मा कर नज़रें नहीं झुकाती 

लटें अब भी उलझती हैं मेरी 
पर उन्हें सुलझाने के 
बहाने तुम्हें पास 
नहीं बुलाती 

बरसात मुझे अब भी 
उतनी ही पसंद है 
पर तुम्हारा हाथ पकड़े 
बूंदों को महसूस करने की 
इच्छा नहीं होती 

रिश्ता तो आज भी है 
पर परवाह और प्यार की जगह 
जिम्मेदारी ने ले ली है...
रेवा 

9 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-07-2018) को "समय के आगोश में" (चर्चा अंक-3036) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. Replies
    1. शुक्रिया अनुराधा जी

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  3. वाह अनुपम सृजन

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  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन इमोजी का संसार और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  5. प्यार अक्सर ज़िम्मेदारी का आवरण भी ओढ़ता है जो प्रेम को सांसें देता है ...
    बहुत ही भावपूर्ण रचना है ...

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    1. अह्हा ....बहुत दिनों बाद अअप आए ....शुक्रिया

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