Followers

Friday, July 13, 2018

मेरी जमा पूंजी


पापा आपके लिए

बचपन की यादें, कितनी प्यारी होती हैं न ..और जब  जनवरी का महीना आता है तो शिद्दत से बचपन और पापा याद आने लगते हैं ।
जबसे होश संभाला तब से शादी के बाद तक, माँ से ज्यादा पापा से जुड़ी रही उनकी सीख उनकी हिदायत उनकी रेसिपी।

एक इच्छा जाहिर करने की देर थी पापा मेरी हर ख़्वाहिश पूरी करने की कोशिश करते। चाहे वो साइंस पढ़ना हो या भूख हड़ताल कर कंप्यूटर क्लासेज करना । या फिर साईकल सिखना , या फिर वेस्टर्न ड्रेस पहनने की चाह जो उन्हें बिल्कुल पसंद न थी , दीदी ने इनमे से कुछ भी नहीं किया था।
धर्म युग नाम की एक मैगज़ीन आती थी तब, पापा हमेशा वो पढ़ कर रोचक बातें साझा करते थे मुझसे । मुझे गाने सुनना बहुत पसंद था , उस समय चित्रहार बुधवार और रंगोली रविवार सुबह आता था । रविवार को मैं और पापा नाश्ता बनाते थे, जैसे ही रंगोली शुरू होता एक आवाज़ आती " बेटा आजा तेरा प्रोग्राम शुरू हो गया है। हम दोनों फिर गाने सुनते और देखते थे ।

एक सफ़ेद मखमल का छोटा बैग लाये थे पापा , जब ठंड शुरू होती तो काजु किशमिश अखरोट आता था घर में , सब मिला कर हम तीनों भाई बहन में बराबर में बांट दिया जाता था, हमारे लिए वो अमृत था, मैं उसे पापा के दिये बैग में रखती और ठंड भर खाती थी , कभी कभी दीदी भईया के हिस्से से भी थोड़ा मार लेती थी ।

जब मैं बीमार पड़ती तो सारा घर सुबह सोता रहता पर पापा हॉर्लिक्स बना कर दे जाते थे मुझे, मजाल है भूखी रह जाऊं, एक बार उन्हें पता चला कि मैं कॉलेज भूखी गयी हूँ तो उन्होंने पूरा घर सर पर उठा लिया था।
पढ़ाई पूरी होने के बाद जब शादी की बारी आई तो उन्होंने बस एक सीख दी थी "बेटा नए माहौल में एडजस्ट होने में कम से कम 1 साल लग जाता है, कोशिश करोगी तो एडजस्ट कर लोगी । बस वही सीख पल्ले में बांध ली थी मैंने।
अब वो इस दुनिया में नही हैं, लगता है वो गए तो पीहर साथ ले गए ....पर उनका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ है और पापा मेरी यादों में हमेशा रहेंगे ।


#रेवा 

12 comments:

  1. दिल को छू गई यह रचना बेहद मार्मिक
    🙏नमन🙏

    ReplyDelete
  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, समान अधिकार, अनशन, जतिन दास और १३ जुलाई “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  3. मन ही समझ पाता है पिता का नेह.

    ReplyDelete
  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (15-07-2018) को "आमन्त्रण स्वीकार करें" (चर्चा अंक-3033) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete