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Tuesday, July 31, 2018

मेरे हमसफ़र




सुनो
जब तुम गीली रेत पर
या गीली मिट्टी पर
चलते हो तो
मैं तुम्हारे पंजे के
निशान पर पैर रख कर
आगे बढ़ती हूँ,
ये मेरा खेल नहीं
बल्कि मुझे पाता है की
तुम मुझे सही
राह पर ले जा रहे हो
समुद्र के ऊँचे लहरों से
से बचाते हुए....

हमारे पथ पर आये सारे
गड्ढों और कटीली
झाड़ियों को हटाते
संकरी पगडंडियों से
होते हुए
मुझे मंजिल तक
पहुँचाओगे.....

परिस्थियाँ चाहे जैसी हों
जब साथ हैं तो पार
कर ही लेंगे हर मुश्किल
अगर तुम लड़खड़ाए
तो मैं थाम लूँगी
गर मैं गिरी तो
हाथ बढ़ा देना

वादा करो
बस यूँ ही हाथ
थामे रहोगे
जीवन के
हर सफ़र में !!!!


#रेवा
#हमसफ़र



4 comments:

  1. बेहद खूबसूरत और भावनाओं से ओतप्रोत करने वाली रचना.

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  2. शुक्रिया संजय

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