कभी कभी जब
मैं आत्मविश्लेषण करती हूँ
तो स्वतः ही
एक सवाल मन में
तो स्वतः ही
एक सवाल मन में
उठता है
मैं क्यों कविताएं लिखती हूँ
क्यों हर रोज़ लगता है
कुछ न कुछ लिखना है ही ?
क्या सिर्फ वाह वाही के लिए
या समाज के लिए
या बस यूँ ही
या ख़ुद के लिए लिखती हूँ ?
जवाब अभी तक स्पष्ट नहीं
लगता है मैं खुद की तलाश में हूँ
प्यार की तलाश में हूँ
जीवन की खोज में हूँ
इसलिए अक्षरों की
लगता है मैं खुद की तलाश में हूँ
प्यार की तलाश में हूँ
जीवन की खोज में हूँ
इसलिए अक्षरों की
शरण में आई हूँ
उनसे पक्की दोस्ती कर
जीना चाहती हूँ
जानना चाहती हूँ
समझना चाहती हूँ
उनसे पक्की दोस्ती कर
जीना चाहती हूँ
जानना चाहती हूँ
समझना चाहती हूँ
वो जो स्पष्ट नहीं
वो जो है तो मुझ में
पर मिलता नहीं मुझे
इसिलए अभी सफ़र में हूँ
अ से ज्ञ तक की
अ से ज्ञ तक की
यात्रा जो करनी है ....
#रेवा
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने रेवा जी।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (10-12-2018) को "उभरेगी नई तस्वीर " (चर्चा अंक-3181) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
शुक्रिया
Deleteजय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 11/12/2018
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
शुक्रिया
Delete