हर बार जाने किस
तलाश में ये वाक्या
बयान करती हूं
पर जितनी बार लिखती हूँ
लगता है
कुछ रह गया लिखना
तलाश में ये वाक्या
बयान करती हूं
पर जितनी बार लिखती हूँ
लगता है
कुछ रह गया लिखना
मिले थे हम वहाँ
जहां मिलती हैं झीलें
अजनबी से उस शहर में
थी ये हमारी पहली मुलाकात
लेकिन पहचान लिया था
भीड़ में भी
दो जोड़ी आंखों को तुमने
चले थे फिर हम कुछ दूर साथ
पी थी कॉफी और कि थी
अनगिनत बात
जहां मिलती हैं झीलें
अजनबी से उस शहर में
थी ये हमारी पहली मुलाकात
लेकिन पहचान लिया था
भीड़ में भी
दो जोड़ी आंखों को तुमने
चले थे फिर हम कुछ दूर साथ
पी थी कॉफी और कि थी
अनगिनत बात
चले गए फिर तुम अपने
रास्ते और मैं अपने
पर एक सकूं था साथ की
कम से कम आज
जिस हवा में तुम सांस ले रहे हो
ले रही हूं मैं भी वहां सांस
न हो फिर कभी मुलाकात
लेकिन पूरी ज़िंदगी
महकता रहेगा ये
पहली मिलन का एहसास
रास्ते और मैं अपने
पर एक सकूं था साथ की
कम से कम आज
जिस हवा में तुम सांस ले रहे हो
ले रही हूं मैं भी वहां सांस
न हो फिर कभी मुलाकात
लेकिन पूरी ज़िंदगी
महकता रहेगा ये
पहली मिलन का एहसास
#रेवा
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 09 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-12-2018) को "कल हो जाता आज पुराना" (चर्चा अंक-3180) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार
Deleteअति सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteवाह बहुत सुन्दर ये पहले अहसास की सौरभ ।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteअति सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteहदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना 👌
ReplyDeleteशुक्रिया
DeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
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