हर रात
जब मन दिन की उलझनों
को भुला कर शांत होता है ,
और निंद्रा की गोद मे
सामने को आतुर होता है ,
तो पता नहीं कहाँ से
दबे पाँव
तेरी यादें दस्तक देने लगती है ,
और फिर
मैं खुली आँखों से
सपने देखते - देखते
कब तेरी बाँहों मे समां
जाती हूँ पता की नहीं चलता ,
तेरे साथ का ये एहसास
तेरा प्यार
यहीं तो है मेरे जीने का आधार
रेवा
जब मन दिन की उलझनों
को भुला कर शांत होता है ,
और निंद्रा की गोद मे
सामने को आतुर होता है ,
तो पता नहीं कहाँ से
दबे पाँव
तेरी यादें दस्तक देने लगती है ,
और फिर
मैं खुली आँखों से
सपने देखते - देखते
कब तेरी बाँहों मे समां
जाती हूँ पता की नहीं चलता ,
तेरे साथ का ये एहसास
तेरा प्यार
यहीं तो है मेरे जीने का आधार
रेवा
तेरा प्यार
ReplyDeleteयहीं तो है मेरे जीने का आधार !!
बहुत ही सुन्दर कविता,आभार.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अहसास लिए हुए है आपकी रचना ....
ReplyDeleteबढ़िया भाव-
ReplyDeleteआभार आदरेया-
बहुत सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुतिकरण एक गहरे अर्थ के साथ-----बधाई
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों----आग्रह है
jyoti-khare.blogspot.in
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (13-03-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
shukriya Pradeepji
ReplyDeleteRajneeshji shukriya....jaroor bhejungi
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण कविता रेवा जी. बधाई इस बढ़िया प्रस्तुति के लिये.
ReplyDeletebohut khub......satyajit
ReplyDeleteसुन्दर रचना. बधाई रेवा.
ReplyDeleteडा. रघुनाथ् मिश्र्
pyar ka ehsaas nhi hota sabhi ke pass ..bahut badiya mere dost bahut badiya
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