क्या लड़कियों का कोई
अपना घर नहीं होता ?
बचपन से माँ यही सिखाती है
ये काम ऐसे कर
वो कम वैसे कर
वर्ना अपने घर जाएगी तो तुझे
ही दिक्कत होगी ,
भाई भी यही कह कर चिढाते हैं
"मैं तो हमेशा यही रहूँगा जाएगी तो तू" ,
जब ब्याह कर चली जाती है
तो उस घर को समझने मे
वहां के
लोगो को जानने मे
सालों लग जातें हैं ,
फिर भी सबको अपना नहीं
बना पाती ,
कहीं न कहीं उसे चीजों
से समझौता करना ही पड़ता है ,
कभी ज्यादा
कभी कम
क्युकी वो जानती है
उसके हाँथ मे और कुछ नहीं ,
कोई जगह है नहीं
जहाँ वो जा सके ,
बाबुल के आंगन मे भी तो यही सीख मिलती है
"उस घर मे डोली जा रही है
अर्थी भी वहीँ से निकलनी चाहिये "
ये बात शायद बरसों पुरानी लगे
पर आज का सच भी यही है ,
ब्याह के बाद मुसीबत आने पर भी
माँ बाप समझा बुझा कर भेज ही देते है ,
ज़माने के साथ बहुत कुछ बदला है
फिर भी ,
क्या लड़कियों का कोई अपना घर होता है ??
रेवा
अपना घर नहीं होता ?
बचपन से माँ यही सिखाती है
ये काम ऐसे कर
वो कम वैसे कर
वर्ना अपने घर जाएगी तो तुझे
ही दिक्कत होगी ,
भाई भी यही कह कर चिढाते हैं
"मैं तो हमेशा यही रहूँगा जाएगी तो तू" ,
जब ब्याह कर चली जाती है
तो उस घर को समझने मे
वहां के
लोगो को जानने मे
सालों लग जातें हैं ,
फिर भी सबको अपना नहीं
बना पाती ,
कहीं न कहीं उसे चीजों
से समझौता करना ही पड़ता है ,
कभी ज्यादा
कभी कम
क्युकी वो जानती है
उसके हाँथ मे और कुछ नहीं ,
कोई जगह है नहीं
जहाँ वो जा सके ,
बाबुल के आंगन मे भी तो यही सीख मिलती है
"उस घर मे डोली जा रही है
अर्थी भी वहीँ से निकलनी चाहिये "
ये बात शायद बरसों पुरानी लगे
पर आज का सच भी यही है ,
ब्याह के बाद मुसीबत आने पर भी
माँ बाप समझा बुझा कर भेज ही देते है ,
ज़माने के साथ बहुत कुछ बदला है
फिर भी ,
क्या लड़कियों का कोई अपना घर होता है ??
रेवा
सच्च का आईना दिखाती रचना ..........पर अब हालात बदलते नज़र आते हैं
ReplyDeleteसुंदर सार्थक भावपूर्ण उत्तम सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
होली की हार्दिक शुभकामनायें
aagrah hai mere blog main bhi padharen
नही होता उनका कोई भी घर ...जबक तक खुद लड़की ही नही समझेगी तब तक
ReplyDeleteआज का यथार्थ, लेकिन हमें अब अपनी सोच बदलनी होगी...होली की हार्दिक शुभकामनायें!
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