कल रात अचानक ही
बिन मौसम बरसात होने लगी ,
लैंपपोस्ट की रौशनी मे
बारिश की बूंदे
मोती की तरह प्रतीत हो रही थी ,
और टप - टप झर रही थी
मानो असमान धरती पर
अपना प्यार बरसा रहा हो ,
पेड़ भी झूम झूम कर
ख़ुशी माना रहे थे ,
बिजली भी चमक - चमक कर मानो
रात के अंधियारे को रौशन कर रही थी ,
मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू
मन को महका रही थी ,
और मैं बाल्कोनी मे खड़ी
इस प्रकृति के सुन्दर मंजर
को निहार कर
मंत्रमुग्ध हो रही थी ,
और सोच रही थी की
ये प्रकृति का मंजर
जीवन के कितने नज़दीक है ,
जीवन मे भी ऐसे ही अचानक
बहार आती है
और हम बस मंत्रमुग्ध से
उसमे खो जाते हैं /
रेवा
बिन मौसम बरसात होने लगी ,
लैंपपोस्ट की रौशनी मे
बारिश की बूंदे
मोती की तरह प्रतीत हो रही थी ,
और टप - टप झर रही थी
मानो असमान धरती पर
अपना प्यार बरसा रहा हो ,
पेड़ भी झूम झूम कर
ख़ुशी माना रहे थे ,
बिजली भी चमक - चमक कर मानो
रात के अंधियारे को रौशन कर रही थी ,
मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू
मन को महका रही थी ,
और मैं बाल्कोनी मे खड़ी
इस प्रकृति के सुन्दर मंजर
को निहार कर
मंत्रमुग्ध हो रही थी ,
और सोच रही थी की
ये प्रकृति का मंजर
जीवन के कितने नज़दीक है ,
जीवन मे भी ऐसे ही अचानक
बहार आती है
और हम बस मंत्रमुग्ध से
उसमे खो जाते हैं /
रेवा
रेवा जी.....बहुत मनोरम और सजीव चित्रण प्रस्तुत करती हुई लाजवाब रचना !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-03-2013) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ... सादर!
bahut bahut shukriya apka....
Deleteबहुत प्यार से लिखी हुई बहुत प्यारी रचना
ReplyDeleteबहुत ही सरस और सजीव चित्रण,सुन्दर रचना.
ReplyDeleteप्रकृति से प्रेम को अभिव्यक्त करती आपकी इस कविता के लिए बधाई!
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएँ!
सच में , प्रकृति के साथ-साथ आपकी रचना भी बहुत मनोरम है ...:))
ReplyDeleteबहुत मनोरम चित्रण...
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
पधारें "चाँद से करती हूँ बातें "
khub rewa bahut khub
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