घर मे थी वो सबसे छोटी
सांवले रंग रूप वाली बाला,सर पर था लम्बे बालों का घेरा
जिनमे था जुओं का भी डेरा,
हर वक़्त हंसती थी
पर सच्ची दोस्ती को तरसती थी
आंखे बरबस बरसती थी ,
पढने मे थी सामान्य
पर बड़े बड़े थे अरमान,
कोशिश पूरी की
पर पा न सकी
अपनी मंजिल अनजान ,
ब्याह हुआ डोली चढ़ी
फिर जगे अरमान,
रखा सबका ध्यान
सास ससुर को दिया सम्मान
पति को प्यार और मान ,
पर बन न सकी
उसकी दोस्त और जान ,
सच्ची दोस्ती और प्यार को
आज भी तरसती है वो अनजान
आँखे बरबस बरसती है ये मान /
रेवा
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!
ReplyDeletedhanyavad
ReplyDeletesolid...
ReplyDelete:) :)
ReplyDeleteजुएं सिर में कुलबुलाने लगे… :)
पर बन न सकी दोस्त और जान :( :(
ये क्यूँ हो जाता है अक्सर?
yeh tho ek prashn hi hai
ReplyDeleteमेरा पता मुहैय्या कराइए....
ReplyDeleteहम यारों के यार हैं!
किसी का भी दुःख बांटने को तैयार हैं!