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Saturday, July 3, 2010

माना अभी मैं बच्ची हूँ

माना अभी मैं बच्ची हूँ
अक्ल की थोड़ी कच्ची हूँ
मगर दिल की बहुत सच्ची हूँ ,

माना के सपने अधूरे हैं
इरादे फिर भी पुरे हैं ,
माना के दूर है अस्मा
पाने का फिर भी है अरमा ,

माना अभी मैं बच्ची हूँ
अक्ल की थोड़ी कच्ची हूँ l 

माना की दुनिया की राहों से अनजानी हूँ
इसलिए तो मैं पागल दीवानी हूँ ,
माना के अपने जिद पर जीना चाहती हूँ
पर सिर्फ प्यार ही पाना चाहती हूँ ,

माना अभी मैं बच्ची हूँ
अक्ल की थोड़ी कच्ची हूँ l 



रेवा

6 comments:

  1. Bachche man key sachche !

    Hahahahahahaaaa

    Jo bada bankar bhi bachcha hi rehta hey ,
    vo hi jivan mey sachcha rehta hey ji !!!

    Good Luck Minni

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  2. don,t get embarrassed. your all poem are in a great sense. keep it on

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  3. माना अभी मैं बच्ची हूँ
    अक्ल की थोड़ी कच्ची हूँ
    मगर दिल की बहुत सच्ची हूँ
    Sach me aisihi lagti ho!Dil ki sachhee!

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  4. kshama ji thanx .....i always wait for ur comments....uskya bina pura hi nahi lagta

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