Followers

Tuesday, June 26, 2018

हमराही



जब चाहा तुम्हारा साथ
तुम्हारे कंधे से कंधा
मिला कर चलना ,
तुम्हे अपना सबसे
प्यारा हमराही और
दोस्त बनाना
तब तुमने
छिटक दिया मेरा हाथ
साथ तो क्या
प्यार के दो बोल
भी मय्यसर न हुए,
अब जब ठोकरें खा कर
मैंने चलना सीख लिया
तो अचानक तुम्हे
एहसास हुआ की
मुझे तुम्हारी जरूरत है
और तुम्हे मेरी
पर अब आदत रह नहीं गयी
हाथ थाम कर चलने की.....
अब फिर से ख़ुद को
बदलना बस में नही मेरे ,
फिर भी साथ तो
चलना है
आखिर जीवन साथी जो हो
तो चलो
एक समझौता करते हैं
मैं तुमसे तुम्हारी बेरुखी
छीन लेती हूँ
और तुम मुझसे मेरा
प्यार मांग लेना
फिर जीवन मैं और तुम
से इतर  "हमारा" हो जाएगा !!!

रेवा 

7 comments:

  1. वाह बहुत खूब लिखा

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-06-2018) को "मन को करो विरक्त" ( चर्चा अंक 3014) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

    ReplyDelete
  3. वाह बहुत गहरा. ...

    ReplyDelete