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Saturday, June 30, 2018

नज़रें



नज़रें  कितना कुछ बयां करती हैं
कितने एहसास भरे रहते हैं उनमें
कुछ  एहसासों को शब्दों में
लिखने की एक कोशिश


विरहन 
जब अपने प्रियतम
के आने की खबर पा कर
उसके पास जाती है
और उसे नज़र भर देखती है

प्यार 
जब पति पत्नी के
कंधे पर प्यार से हाथ
रखता है और पत्नी
उसे निहारती है

व्यथा 
जब एक विधवा
दूसरी को देखती है
अपने जैसे दुःख से
गुजरते हुए

ममता
माँ रोती भी है
हंसती भी है
जब बेटी दुल्हन
बनती है

संतुष्टि 
जब अपने भूखे बच्चे को
खाना खाते हुए
माँ देखती है

बचपना 
बरसात को देख
भीगते उछलते
बड़ी उम्र के लोगों की
शरारती नज़रें

तृप्ति 
भूखे की थाली में
भोजन और प्यासे
को पानी
वो तृप्ति भरी नज़र

कुटिल
ये सबसे पहले
नज़रें बता देती हैं
शब्द और कार्य
देखने की जरूरत
ही नहीं पड़ती .......


रेवा

6 comments:

  1. बहुत बढ़िया

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (02-07-2018) को "अतिथि देवो भवः" (चर्चा अंक-3018) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  3. नजर भी किस किस रूप अलग अलग होती हैं यह बहुत ही खुबसुरती से व्यक्त किया हैं आपने।

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