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Friday, June 29, 2018

गुड़िया


छोटी सी गुड़िया थी तू
जब भगवान ने तूझे मेरी
झोली में डाला था..

पूरे घर में
उछलते कुदते
मिठी मिठी बातें करते
नखरे दिखाते
कब बड़ी हो
मेरी प्यारी सखी बन गयी
पता ही नहीं चला

मेरे हर फैसले में
मेरा साथ देने लगी
बिलकुल मेरी छाया
बन कर
पर तब सोचा नहीं
एक दिन तूझे
ये घर छोड़
पीया के घर जाना होगा
या सोचना चाहती नहीं थी

पर अब जब ये घड़ी
सामने है
तो दिल का कोना
रोज थोड़ा थोड़ा
खाली हो जाता है
आंखे रोज़ बरसती हैं
लेकिन मन बार बार
यही कहता है
जा रही है तू करने नयी ज़िन्दगी की शुरुआत
मिले तूझे प्यारे लम्हों की सौगात
पीया का सदा रहे तेरे हाथों में हाथ
होती रहे हमेशा ख़ुशियों की बरसात

रेवा

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-07-2018) को "करना मत विश्राम" (चर्चा अंक-3018) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. दिल को छू लेनेवाली कविता

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