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Thursday, September 20, 2018

कान्हा



वो जो मेरा कान्हा है न
वो बादलों के बीच
कहीं जा बैठा है
कोई सीढ़ी उस तक
अगर जाती तो मैं रोज़
पहुँच जाती

लेकिन आज एक पगडंडी
नज़र आयी है
जब आँखें बंद कर
उसके सामने बैठती हूँ न
तो वो आता है मुझसे मिलने
मुस्कुराता है अपने
अंदाज़ में और फिर
झट जा कर छिप
जाता है बादलों की
ओट में

उसकी इसी मनोहारी
रूप को देखने मैं हर
सुबह शाम उसके
सामने जा बैठती हूँ
अपनी श्रद्धा का
अलख जगाये
और तृप्त हो जाती हूँ
उसका दर्शन पा कर.....

#रेवा 
#कान्हा 



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