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Wednesday, September 12, 2018

अंतर का दीया (१)




मेरे अंतर में 
एक दीया सदा
प्रजवलित रहता है
जो मुझे हर ग़लती
में आगाह करता है

जो मेरी नकारत्मकता को
सकारात्मक ऊर्जा में
बदलता है

जो मेरे अंदर
मानवता की लौ को
किसी हाल में बुझने
नहीं देता

उस दीये की लौ की
ऊष्मा से मेरे सारे
दर्द वाश्प बन
उड़ जाते है

ये मुझे मेरी काया को
पढ़ने में मदद करता है 
और  मुझे प्यार की
खुश्बू से ओत प्रोत
रखता है

ये मेरे अंतर का दीया
मेरी काया का प्राण स्रोत है
जिस दिन ये काया मिट्टी
हो जाएगी 
उस दिन ये दीया
साईं तेरे दर पर जलेगा

#रेवा 
#अंतर का दिया 




10 comments:

  1. सत्य कहा है आपने बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना

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  2. ये मेरे अंतर का दीया
    मेरी काया का प्राण स्रोत है
    जिस दिन ये काया मिट्टी
    हो जाएगी
    उस दिन ये दीया
    साईं तेरे दर पर जलेगा सुंदर रचना 👌

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  3. किसी के दर पर जले न जले
    आपकी कविता और अल्फ़ाज़ों में ये दीपक हमेशां प्रज्वलित रहे।
    क्योंकि दिए से दिया जलना चाहिए।

    बेहद सुंदर रचना।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-09-2018) को "हिन्दी दिवस पर हिन्दी करे पुकार" (चर्चा अंक-3094) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हिन्दी दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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