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Monday, March 25, 2013

लड़कियों का अपना घर

क्या लड़कियों का कोई
अपना घर नहीं होता ?
बचपन से माँ यही सिखाती है
ये काम ऐसे कर
वो कम वैसे कर
वर्ना अपने घर जाएगी तो तुझे
ही दिक्कत होगी ,
भाई भी यही कह कर चिढाते हैं
"मैं तो हमेशा यही रहूँगा जाएगी तो तू" ,
जब ब्याह कर चली जाती है
तो उस घर को समझने मे
वहां के
लोगो को जानने मे
सालों लग जातें हैं ,
फिर भी सबको अपना नहीं
बना पाती ,
कहीं न कहीं उसे चीजों
से समझौता करना ही पड़ता है ,
कभी ज्यादा
कभी कम
क्युकी वो जानती है
उसके हाँथ मे और कुछ नहीं ,
कोई जगह है नहीं
जहाँ वो जा सके ,
बाबुल के आंगन मे भी तो यही सीख मिलती है
"उस घर मे डोली जा रही है
 अर्थी भी वहीँ से निकलनी चाहिये  "
ये बात शायद बरसों पुरानी लगे
पर आज का सच भी यही है ,
ब्याह के बाद  मुसीबत आने पर भी
माँ बाप समझा बुझा कर भेज ही देते है ,
ज़माने के साथ बहुत कुछ बदला है
फिर भी ,
क्या लड़कियों का कोई अपना घर होता है  ??


रेवा













4 comments:

  1. सच्च का आईना दिखाती रचना ..........पर अब हालात बदलते नज़र आते हैं

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  2. सुंदर सार्थक भावपूर्ण उत्तम सुंदर प्रस्तुति
    बहुत बहुत बधाई
    होली की हार्दिक शुभकामनायें

    aagrah hai mere blog main bhi padharen

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  3. नही होता उनका कोई भी घर ...जबक तक खुद लड़की ही नही समझेगी तब तक

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  4. आज का यथार्थ, लेकिन हमें अब अपनी सोच बदलनी होगी...होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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