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Monday, September 24, 2018

मैं एक औरत हूँ



मैं एक औरत हूँ 
पर हां तुम्हारी 
ज़िम्मेदारी नहीं हूँ
मैं अपनी ज़िम्मेदारी
ख़ुद हूँ

मैं औरत हूँ
प्यार बेशुमार
है दिल में
पर उसके लिए तुमसे
भीख नहीं मांगती
वो मेरे अंदर है
मेरा इश्क़ है

मैं औरत हूँ
सहनशक्ति
बहुत है मुझमे
पर तुम्हारी ग़लत
बातों को सिर्फ परिवार
चलाने के लिए नहीं
मान सकती
परिवार तुम्हारा भी है

मैं औरत हूँ
तुम्हें जो पसंद है
वोही करूँ वैसे ही रहूं
ज़रूरी तो नहीं
मेरी पसंद नापसंद
मेरी अपनी है

मैं औरत हूँ
मुझे सिर्फ गहनों और
कपड़ों से ही प्यार है
ये तुम्हारी सबसे
बड़ी भूल है
हमे प्यार से प्यार है

मैं औरत हूँ
ये कहने की
ज़रूरत है क्योंकि
तुम बहुत सारी
ग़लतफ़हमी पाले बैठे हो

#रेवा 
#औरत 

14 comments:


  1. मैं औरत हूँ
    मुझे सिर्फ गहनों और
    कपड़ों से ही प्यार है
    ये तुम्हारी सबसे
    बड़ी भूल है
    हमे प्यार से प्यार है बेहतरीन रचना रेवा जी

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    Replies
    1. बहुत शुक्रिया अनुराधा जी

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  2. मैं औरत हूँ
    प्यार बेशुमार
    है दिल में
    पर उसके लिए तुमसे
    भीख नहीं मांगती
    वो मेरे अंदर है
    मेरा इश्क है बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना

    ReplyDelete
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26-09-2018) को "नीर पावन बनाओ करो आचमन" (चर्चा अंक-3106) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  4. बहुत सुन्दर ! पति की छाया, उसकी अनुगामिनी, उसके चरणों की दासी, उसकी अर्धांगिनी, के दिन बीत गए. अब स्वयं-सिद्धा, स्व-शासित और स्वयं में सम्पूर्ण, शक्ति-स्वरूपा नारी का युग है.

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  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27.9.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3107 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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