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Saturday, August 11, 2018

नहीं लिखना चाहती



मैं कवयित्री हूँ !
पर नहीं लिखना चाहती
शोक गीत
नहीं लिखना चाहती
राजनीति के दाँव पेंच
नहीं लिखना चाहती
बच्चियों के साथ अत्याचार
नहीं लिखना चाहती
मिड डे मील से होती मौत
क्योंकि नहीं भर सकती
अपने बच्चों के
फेफड़ों में भय 

नहीं लिख सकती
किसान की भूख और
पेड़ों से लटके शव
नहीं लिखना चाहती
सैनिकों के रोते बच्चे
नहीं लिखना चाहती
त्रस्त आम नागरिक

लिखना चाहती हूं
मेरा खुशहाल भारत
मेरा भारत महान
लिखना चाहती हूं
भाई-भाई
हिन्दू मुसलमान
सारे जहाँ से अच्छा
हमारा हिन्दुस्तान
पर लिख नहीं पाती

समाज के हर कोने से सुनते ही
अजगर निकल आयेगा
मेरी सोच और कलम को मेरे साथ
निगल जायेगा, निगल जायेगा।


#रेवा 
#भारत 

10 comments:

  1. सुंदर और सार्थक रचना

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    1. शुक्रिया अनुराधा जी

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  2. आदरणिया अनुजा आपकी कविता मे अंतिम पंक्ती है उसके उलट कलम कार की हिम्मत को आमंत्रण देती अयोध्या मे जन्मी लखनउ निवासी आदरणिया डॉक्टर मानसी चतुर्वेदी जी कि पंक्तिया सोंपता हूँ कि
    हुक्मरान कैसा भी हो , हर गलती पर लिख डाली निंदा ।।
    सुनो बदोलत सिर्फ तुम्हारे,हर अपराधी है शर्मिंदा ।।
    लोक तंत्र की उंगली हो , सच्च को सच्च लिखते रहना ।।
    ना तलवार तीर हाथ मे , फिर भी भय है सब मे जिंदा ।।
    मेरी ओर से आपको समर्पित
    अजगर लीले कलम तुम्हारी , तुम इतनी कमजोर नही ।।
    शक्ती का ही तुम स्वरूप हो , तुम सा कोई ओर नही ।।
    अजगर का मुख बंद करो तुम , शब्दो से लिख डालो निंदा ।।
    लीले तुमको कलम सहित जो , दो अजगर को फांसी फंदा ।।

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  3. अच्छा लिखा आपने

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