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Friday, August 24, 2018

ओस की बूंद


आज पढ़िए मेरी एक पसंदीदा पुरानी रचना

ओस की बूंद सी है
मेरी ज़िन्दगी
सिमटी सकुची
खुद में 
अकेले तन्हा
पत्ते की गोद
पर बैठी ,
सूर्य की
किरणों के साथ 
चमकती, दमकती,
इठलाती 
मन में कई
आशाएं जगाती,
हवा के थपेड़ो को
झेलती, सहती 
फिर उसी मिट्टी में
विलीन हो जाने को
आतुर रहती ....
ओस की बूंद सी है
मेरी ज़िन्दगी.......

रेवा

15 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-08-2018) को "जीवन अनमोल" (चर्चा अंक-3074) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, शुरू हो रहा है ब्लॉगरों के मिलने का सिलसिला
    , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....

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