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Saturday, August 25, 2018

इंसान


उदासी ओढ़ कर
आँसू बिछा कर
बैठ जाना तो बहुत
आसान काम है
हर कोई कर सकता है

पर जब हमने 
इंसान बन कर 
जन्म लिया है तो फिर
सोचना, समझना
हर परिस्थिति का
सामना करना
इन सब से तो हमारी
पक्की यारी होनी ही है 

खुशी देने के लिए ही तो 
बनाया है न ईश्वर ने
चाँद तारे
फूल ओस
तितली पंछी
बरसात हवा
इन्हें महसूस करो
और मस्ती से भर जाओ

तो चलो
उदासी को समेट कर
रख दो ऐसी जगह
जहां से वो दिखे ही न
और आंसुओं को
खुशी से वाश्प
बना उड़ा दो
और लग जाओ
जीवन को जीने में


#रेवा 
#जीवन 

12 comments:

  1. वआआह...
    बेहतरीन
    सादर

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  2. बहुत ही सुंदर और प्रेरक रचना। उदास क्यूँ होना ....

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-08-2018) को "आया फिर से रक्षा-बंधन" (चर्चा अंक-3075) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    रक्षाबन्धन की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. बेहतरीन सीख

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  6. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 28/08/2018
    को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  7. बहुत सुंदर संदेशात्मक कविता रेवा जी।
    ज़िंदगी के कुछ सबक हम सीख ले तो जीने में कितनी सहूलियत हो जाएगी न।

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  8. वाह!!बहुत खूब!!

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