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Monday, August 20, 2018

मैं स्त्री हूँ





हां मैं स्त्री हूँ
लेकिन कमज़ोर
बिल्कुल नहीं ...
और साथ साथ ये भी बता दूं
मैं भी इंसान हूँ

मुझ में संवेदनाएं हैं 
अपनों से जुड़ी 
परिस्थियाँ मुझे
विचलित करती हैं
और तब मैं भावनाओं 
में बह कर कमज़ोर
पड़ जाती हूँ

मैं कमज़ोर पड़ जाती हूँ
जब बात आती है
मेरे बच्चों की
जब बात आती है
उनके भविष्य की

मैं कमज़ोर पड़ जाती हूँ
जब मैं चाहती हूं हर
कीमत पर अपने घर की
सुख और शांति

मैं कमज़ोर पड़ जाती हूँ
जब देखती हूँ
पति का चिंतित लटका
हुआ चेहरा
उनकी बिगड़ती सेहत

मैं कमज़ोर पड़ जाती हूँ
जब मैं देखना चाहती हूं
अपने घर के सदस्यों
के चेहरे पर खुशी और सुकून
और ये सब इसलिए की
मैं इन सब से बेइंतहा प्यार
करती हूं 

लेकिन ये भी बता दूं
मुझे कभी 
टेकन फ़ॉर ग्रांटेड मत लेना 
क्योंकि स्त्री तो हूँ पर 
कमज़ोर न बिलकुल नहीं ....... 


#रेवा 
#स्त्री 

10 comments:

  1. तो कमजोर किसने कहा है स्त्री को?
    इंसान कौन नहीं मान रहा है स्त्री को
    इन सब मौकों पर कमजोर क्यों पड़ती हैं
    ये तो हिम्मत दिखाने के अवसर हैं।
    आप अवसर की तरह लें न कि कमजोर पड़ने का मौका समझें।

    परिस्थितियों और सवेंदनाओ के साथ मिलकर कमजोर होना छोड़े, इनके साथ मजबूत होकर दिखाएं।

    आज की स्त्री मजबूत देखने की तमन्ना है मेरी।
    हर तरफ से।

    यु know मर्द कभी चीख चीख ये क्यों नहीं कहता कि वो कमजोर नहीं है क्योंकि दुनिया की नजर में मर्द इज़ ए सिम्बल ऑफ पावर।

    मैं जानता हूँ कि मुझे सिर्फ कविता पर कॉमेंट करनी चाहिए
    पर क्या करें जी आदतन मजबूर


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    1. जी शुक्रिया ....सही कहा आपने

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  2. शुभ प्रभात दीदी
    आपका ब्लॉग, ब्लॉगसेतु पर नम्बर 4 पर है
    कृपया लोगो लगाएँ
    सादर

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-08-2018) को "नेता बन जाओगे प्यारे" (चर्चा अंक-3071) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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