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Tuesday, August 28, 2018

पक्की सखी (अमृता)


जब कभी
मन बेचैन हो उठता है
और दिल बोझिल
सा हो जाता है
तब मैं अपने दोस्त
कलम और कागज़
के पास आती हूँ
पर जाने क्यों
कभी कभी लफ्ज़
मुझसे दुश्मनों सा
व्यवहार करते हैं

तब कुछ सूझता नहीं
पर ऐसे समय
हर बार मेरी पक्की
सखी अमृता
आ जाती हैं मेरे पास ,
मैं पढ़ने लगती हूँ
उनकी नज़्म
जाने क्यों उनका लिखा
पढ़ते पढ़ते
मेरा रोम रोम सिहर
उठता है
आँखों से बरसात
होने लगती है

ऐसा प्रतीत होता है जैसे
मैं उन्हे सुन पा रही हूँ
उनकी आँखों में वो
प्यार देख पा रही हूँ
लगता है जैसे
उनका इश्क
शब्दों में ढल कर
मेरी रूह तक पहुँच
रहा है .....

मैं ख़ुद को सकारात्मक
ऊर्जा से भरा हुआ
महसूस करती हूँ
और पता है
जब जब मेरी
उनसे ऐसी मुलाकात
होती है न
तब तब मैं
ख़ुद को उनके और
करीब पाती हूँ......

#रेवा
#अमृता के बाद की नज़्म



4 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (29-08-2018) को "कुछ दिन मुझको जी लेने दे" (चर्चा अंक-3078) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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