गृहणी.....एक लड़की वो जो अपना घर छोड़ कर अपने दोस्तों को छोड़ कर ,एक पुरे अलग परिवेश मे अनजान लोगो के बिच आती है अपने जीवन साथी का हाँथ थामे ,अनेको सपने आँखों मे लिए , वो एक एक कर के सब रिश्तो को समझती , उस घर के सारे रीती रिवाज़ अपनाने की कोशिश करती है धीरे धीरे वो सरे घर का , घर के बढो का ,अपने बच्चो का पति का सबका ध्यान रखने लगती है , सबकी पसंद ना पसंद , दुःख दर्द का बड़े प्यार से ख्याल रखती है
लेकिन यहीं से शुरू होती है उसकी व्यथा , इन सबको उसका फ़र्ज़ समझा जाता है ये तो उसे करना ही है , पर दुसरो के फ़र्ज़ का क्या ??? ये कोई नही सोचता उसकी खुशियाँ ,उसके पसंद ना पसंद ,उसकी इच्छाएँ कोई मायिने नही रखती उसकी भी कोई सोच है, उसका भी अस्तित्व है, पर उसे यह बोला जाता है की "तुम्हे कुछ नही समझ आता तुम अपना काम करो " बस वो सारा दिन चक्की की तरह सुबह से शाम पिसती रहती है, जो घर छोड़ आई है उसे वो अपना बोल नही सकती , और इस घर मे भी उसे सम्मान ना मिले तो वो क्या करे ???
ऐसे मे उसे सबसे ज्यादा जरूरत होती है अपने जीवन साथी की, अगर वो एक अच्छे दोस्त की तरह उसके कंधे से कन्धा मिला कर हर मुसीबत मे साथ दे ,चाहे वो घर के लोगो से हो या फ़िर कुछ भी, तो शायद जीना आसन हो जाता है पर ऐसा बहुत काम लोगो के साथ है , और जिनके साथ नही वो क्या करे ?????? या तो इसे ही अपना नसीब मान कर जीती रहे ............या अन्दर ही अन्दर घुटे, उसे क्या चाहियी ....... उसे चाहिए तो सिर्फ़ बहुत सारा प्यार और सम्मान ,पर यही उसे नही मिल पाता तो वो क्या क्या करे ????????
जानती हुं की दुनिया बहुत आगे निकल गई है नारी अब घर बहार दोनों कार्यो को बखूभी निभाने लगी है ,अपने फैसले ख़ुद लेती है ,और लोग उसका साथ देते है बहुत से पति भी अपनी पत्नियों का पुरा ध्यान रखते है ,उन्हें अपनी दोस्त समझते है , पर फ़िर भी यह प्रश्न चिन्ह बहुत सारी गृहणियों के जीवन मे है
रेवा