और आँखें नम रहती थीं
तब तुम आए थे
खिंच लाये मुझे
बैठाया मुझे अपने पास
पूछा दिल की बात
मैं अपनी दर्द की डायरी के
सफे पलटने लगी
और तुम्हें सुनाती रही
कितने दिन तुम बस
मूक सुनते रहे
तो मुझे डूबने से
बचाते रहे
उदास आंखों
को मुस्कान का
लिबास पहनाते रहे
जिस दिन खत्म
हुई वो डायरी
थाम लिया तुमने
सैलाब को
प्यार का मरहम
लगाया
हर ज़ख्म
भर कर उस
पर एहसासों का
इत्र लगा दिया
खिलखिलाता है
ये दिल, ये आंखें
और हम❤तुम