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Saturday, December 25, 2010

क्यों होता है हमेशा ऐसा ???

गुलबिया पति की रोज मार सहती
ज़िन्दगी जी रही थी ,
रोज आंसु बहाती
पर वो न पिघलता ,
एक दिन ऐसा भी आया 
उसने घर छोड़ने का फैसला कर लिया ,
पति ने दो चार आंसु बहाए
प्यार के दो बोल बोले ,
पिघल गयी वो
पर मन मे कहीं जानती थी वो ,
कल फिर वही होगा , जो पहले होता था
फिर भी मान गयी.......
क्यों ?
क्यों होता है हमेशा ऐसा ???

रेवा

Tuesday, December 21, 2010

मेरे ज़ख़्म

आज किसी ने पूछा 
मेरी ज़िन्दगी का सच
मेरी पूरी कहानी…… 
पता था 
अपने बारे मे 
बताना मतलब
फिर से उन ज़ख्मों को 
कुरेद कर हरा करना
फिर कुछ दिन 
उन घावों मे से
 लहू का रिसना ......
पता है न 
पुराने ज़ख़्म 
भरते नहीं जल्दी
और जिसे बार-बार 
कुरेदा जाये 
वो नासूर बन जाते हैं ........
फिर भी बता दिया ,
खुद भी रोई 
उसे  भी रुला दिया 
पर फिर भी एक 
आन्तरिक ख़ुशी महसूस हुई 
शायद अपना दुःख बांटा और
एक सच्चा इंसान पाया ...........


रेवा .

Sunday, December 19, 2010

क्या है कोई जवाब ??

मेरे सपनों की एक अलग दुनिया है 
मेरी दुनिया है तो मैं खुश हूँ 
उस दुनिया मे ढेरों खुशियाँ हैं 
मेरा प्यार है ,जो  हर पल मेरे साथ रहता है 
मुझे इतना प्यार देता है 
जितना कभी किसी ने किसी से न किया हो ......
पर आजकल मैंने खुद को अपनी दुनिया से दूर कर लिया है 
एक भ्रम मे जीती हूँ 
हंसती तो हूँ 
पर अपना दर्द छुपाने के लिए ,
आंसुओं को कैद कर लिया है ,
पलकों के कैदखाने मे........
पर जब कभी खुद के साथ 
सक्झात्कर होता है 
तो यह आंसू बगावत पर उतर आते हैं ..........
आखिर क्यों डरती हूँ मै अपनी दुनिया मे जाने से ,
क्यों 
जवाब कुछ नहीं मिलता 
बस लगता है 
जब वैसी दुनिया का मिलना नामुमकिन है 
तो क्यों देखूं सपने 
क्यों बहू भावनाओं मे 
क्या है कोई जवाब आपके पास ????




रेवा 

Sunday, December 5, 2010

अपंग

आज फिर सुबह 
चाय के साथ 
अकबार  पढ़ रही थी ,
उफ्फ्फ फिर वही खबर 
एक औरत की अस्मत लुटी गयी.....
फिर उसके पुरे एहसास को 
कुचल दिया गया ,
चंद लोग अपनी वेह्शत 
को अंजाम देने के लिए 
न जाने कितनी बहनों
के साथ यह घिनोनी 
हरकत करते है ......
पढ़ कर मन आक्रोश से भर गया 
इतना गुस्सा आया की 
पता नहीं क्या कर दू ,
पर फिर लगा यह सब बेकार ,
पढ़ा दुःख हुआ 
गुस्सा भी आया ,
पर कुछ दिनों मे
सब भूल जाएंगे 
उनमे से मैं भी एक हूँ 
फिर ज़िन्दगी वैसे हि चलने लगेगी ,
आज खुद को पहली बार 
अपंग महसूस कर रही थी.....




रेवा 



Thursday, December 2, 2010

आज़ादी

प्यार सिखाया तुमने
सोये हुए एहसास जगाये तुमने 
धीरे धीरे हर चीज़ जोड़ा तुमने 
हमे एक दूसरे की हर बात 
पता होने लगी,

दूर होते हुए भी 
नज़दीकी महसूस करने लगे 
तुम कहीं और, और मैं कहीं और 
फिर भी हम समय बांध कर
अलग अलग साथ खाने  लगे
चाय पीने  लगे 
बाहर भी जाते आते तो बता कर 

पर फिर अचानक तुम 
ज्यादा व्यस्त रहने लगे ,
हर बात पर " क्या करूँ बिजी हूँ "
कहने लगे ,
बातें कम हो गयी ,खबर ही न 
रहती एक दूसरे की ,
फिर एक दिन ऐसा आया
तुमने बोला 
" जाओ तुम्हें आज़ाद किया "
क्या सच मे  इसे आज़ादी कहते हैं ??


रेवा 



Tuesday, November 30, 2010

ये चार दिन

तुम जब सुबह शाम 
सामने दीखते हो तो 
पता नहीं चलता ,
तुम पर गुस्सा करती 
कभी चिढ कर
चिल्ला भी देती हूँ ,
जब कभी  रसोई 
मे मदद करने आते 
हो तो ,गुस्से मे बोलती की 
"तुम सब गन्दा कर दोगे "
 रहने दो ,
शाम की चाय पर तुम्हारा 
इंतज़ार करती ,पर जब 
बनाने बोलते तो ,जूठा
गुस्सा दिखा कर बोलती की 
"तुम तो मुझे ख़ाली देख 
हि नहीं सकते हो 
बस आते हि काम पर
लगा देते हो" ,
आज जब बस चार 
दिनों के लिए बाहर
गए हो तो ,सब याद 
आ रहा है,
बार बार बस यही कहने 
को जी चाह रहा है ..........


"न वादों से न यादों से 
प्यार करती हुं तुझे सांसों से 
इन सांसों की लड़ी तोड़ न देना 
मुझको कभी तनहा छोड़ न देना "



रेवा 


Wednesday, November 24, 2010

स्त्री की कहानी.

वैसे कहने को तो हम 
पूरी ज़िन्दगी जीते हैं ,
बचपन अपने माँ बाप 
के हिसाब से ,
शादी के बाद अपने 
पति, सास ससुर के 
हिसाब से ,
कभी घर के हालत 
की वजह से ,
कभी किसी और 
वजह से ,
कभी इसके  लिए   
कभी उसके लिए,
हर मोड़ पर ,हर जगह 
समझोता करते आयें हैं ,
कहने को हम कहते हैं 
यही ज़िन्दगी है 
खुश हो कर जीओ  ,
पर क्या इन सब के बीच 
हम एक पल एक घडी 
अपनी मर्ज़ी से 
अपनी ख़ुशी के लिए 
अपनी ज़िन्दगी जी पाते हैं ????




रेवा 


Monday, November 15, 2010

ये आंखें

आज फिर आँखों ने
बह  कर अपनी 
कहानी कह दी ,


आज फिर शीशे ने 
इन बिलखती प्यार 
भरी आँखों  को 
देखने से इंकार कर दिया ,


आज फिर आँखों 
ने खुद को 
ज़ल के छीटों 
से शीतल किया ,


आज फिर इसने 
प्रशन नहीं किया की 
यह कब तक 
ऐसे बहती बहती 
अपनी कहानी कहेंगीं ,


शायद पत्थर बन 
कर यह अपनी 
जिंदगानी पूरी करेंगी ............


रेवा 



Wednesday, November 10, 2010

इंतज़ार

नदीया सी 
इठलाती बलखाती 
उछलती कूदती 
बहती रहती थी मै ,
मन मे एक आस लिए 
जीती थी 
सोचा था एक दिन 
तेरे प्यार भरे समुद्र मे 
समां कर ,विलीन हो जाउंगी
अपना सब कुछ 
न्योछावर कर 
बह जाउंगी 
तेरी धारा के साथ ,
मै बहती गयी तुझमे 
पर तुने 
अपना रुख मोड़ लिया 
मुझे तनहा छोड़ दिया 
पर मैं आज भी बहती हूँ 
करती हुं इंतज़ार 
मन में आस लिए की 
कभी न कभी तू 
समझेगा मेरा प्यार |

रेवा 



Monday, November 1, 2010

तुम थे

मेरी कविताओं के प्रेरणा स्रोत तुम थे
कलम भी तुमने दिया था 
उसमे रंग भी तुमने भरे थे  ,
तुझसे मिली एहसासों को 
काग़ज पर उतार
उन्हें शब्दों के मोतियों मे पिरोया करती थी 
उनके साथ हँसा और रोया करती थी ........
पर अब जब तू नहीं साथ तो 
तो सारे फीके हैं  जज्बात
कहाँ से लाऊं शब्द कैसे लिखू 
प्यार की बात ,
सुने है दिन ,सूनी हर रात 
न हँसी है ,न पहले सी बात 
ईट के मकान मे रहती है बस एक आदम ज़ात  .........


रेवा 


Thursday, October 28, 2010

कभी कभी

मन क्यों इतना बोझिल हो जाता है कभी कभी

आंसू क्यों नहीं रोक पाते हम कभी कभी

क्यों सारी दिल दुखाने वाली बात याद जाती है तभी तभी

क्यों सारी दुनिया सारे लोग बेगाने लगने लगते है तभी तभी

रेवा

Sunday, October 3, 2010

Art of Living ki class...

Art of living ki class
लेती हमारे सांसों की क्लास
सिखाती हमें मन , ज्ञान
और ध्यान की बात .......
कराती हमें वर्तमान मे जीने का एहसास
और दिखाती है हमे खुद से मिलने की राह ..........

रेवा

Thursday, September 30, 2010

अभी बाकी है

कई बार सोचा की कुछ ऐसा लिखूं ,
जो प्यार की परकाष्ठा को बयां कर सके ,
या मन मे भरे दर्द का एहसास करा सके
ऐसा कुछ जिससे मन द्रवित हो ,
आँसू बहाने पर मजबूर हो जाये ....
पर हर बार नाकाम रही ,
शायद अभी प्यार की उस ऊंचाई तक पहुँचना  बाकी है ,
शायद उतने दर्द को महसूस करना अभी बाकी है ,
शायद प्यार मे मरने का ,
और दर्द मे जीने का स्वाद चखना अभी बाकी है ..................

रेवा

Sunday, September 26, 2010

बेटियों का दिन

आज DAUGHTERS DAY के दिन , मै सभी बेटिओं को बहुत बहुत बधाई देती हुं

भगवान करे उन्हें अपने जीवन के हर छेत्र में सफलता मिले .......और हाँ हम सारी

माँओं को भी बधाई ...क्योकि हम भी किसी की बेटी हैं.............


रेवा

Wednesday, September 22, 2010

तेरा साथ

मेरे हर पल मे तू समाया है
ये मै जानती हूँ और तू भी मानता है 
कि मेरी हर एक कविता में तेरा साया है
कविता के हर शब्द मे तुने प्यार बसाया है,

ये जज्बात , ये एहसास , 
ये चंदा और चाँदनी सा प्यार 
तुने ही सिखाया है,

फूलों और खुशबुओं की बातें , 
ख़्वाबों से भरी रातें 
तुने ही दिखाया है,

दुरी मे नजदीकी 
कभी न मिलते हुए भी इतना प्यार 
तुने ही महसूस कराया है,

हर पल , हर लम्हा तू मेरे साथ है ,
मेरे हर सही गलत फैसलें मे तेरा हाँथ है 
ये तुने ही विश्वाश दिलाया है,

अब ज़िन्दगी के अंतिम समय तक 
हमारा प्यार बना रहेगा , ये
विश्वाश मैंने पाया है ............


रेवा

Monday, September 20, 2010

मेरी बेटी

प्यारी सी दुलारी सी मेरी बेटी

घर भर मे उछलती कूदती मेरी बेटी

हर वक़्त शोर मचाती ,
अनगिनत बातें करती मेरी बेटी

मेरी आँखों का नूर मेरे दिल का सुकून मेरी बेटी

अपने प्यार से मुझमे नयी उमंग भरती मेरी बेटी

मेरे हर दुःख , 
हर खुशी को समझने की कोशिश करती मेरी बेटी

मेरा बचपन मुझे दिखाती मेरी बेटी

धीरे धीरे बड़ी होती , 
मेरी सहेली बनती मेरी बेटी

एक दिन डोली में बैठ कर,
किसी और के घर का उजाला बन जाएगी मेरी बेटी

जीवन के हर मोड़ पर तुम्हे ख़ुशी और सफलता मिले मेरी बेटी



एक माँ (रेवा)

Sunday, September 5, 2010

कुछ कवितायों की कलियाँ

१.ना वादों से ना यादों से
प्यार करती हुं तुझे सांसों से
इन सांसों की लड़ी तोड़ न देना
मुझे कभी छोड़ न देना ...........

२.हवा क्यों बहती है तेरे बिना
बारिश क्यों होती है तेरे बिना
सांसें क्यों चलती है तेरे बिना
मौत क्यों नहीं आती है तेरे बिना

३.ना किसी का इंतज़ार है अब
हम गुमनामियों में खो गयें है अब

न ख़ुशी है न गम है
बस तन्हाई है हर तरफ

४.तेरी बेरुखी ने ये काम किया है
कुछ और आसुओं को मेरे नाम किया है

रेवा

Friday, August 20, 2010

बिता वक़्त लौट के ना आये

अपने चारों तरफ एक दिवार सी खड़ी
कर ली है मैंने.....कोशिश है की एक
भी एहसास बहार न जा पाए .....
तू जैसा देखना चाहता है वैसा ही देख
पाए मुझे .....पर मेरे अन्दर क्या
चल रहा है ,वो न दिख पाए तुझे
क्युकि अब तेरे पास शायद
वक़्त नहीं जो तू पढ़ पाए मुझे ,
मैं भी अब समझ चुकी हूँ की
लाख कोशिश कर लूँ पर

बिता वक़्त लौट के कभी ना आये ,
थोड़ी घुटन होगी जरूर ...रूउंगी
दुआ मांगूगी फ़िज़ूल ........
पर वक़्त के साथ समझ जाउंगी
यह बात ......ना तू समझेगा
ना बदलेंगे तेरे हालात .....
पर फिर भी खुश रहूंगी के
तू खुश है......इस से बढ़ कर
मेरे लिए कोई नहीं है सौगात ........

एक प्रेयसी (रेवा)



Wednesday, August 11, 2010

यादों की पंखुड़ियाँ



अंतिम लाइन मैंने कहीं पढ़ी थी,वो ही इन पंक्तेयों की प्रेरणा स्रोत है l

तेरी यादों की पंखुड़ियों को मैंने
अपनी दिल की डायेरी मे सहेज
कर रखा है ,
जब तेरी यादें
अपनी सारी हदें तोड़ कर 
तड़पाने लगती हैं तो 
उन पंखुड़ियों पर
कुछ ओंस की बूंदें भी पड़ जाती हैं ,
पर आज क्यूँ उन पंखुड़ियों से अपने
दिल को बहलाने मे नाकाम हो रही हूँ ,
क्यों ओंस की बूंदे जलधार बनने
को आतुर हो रही हैं ,
शायद आज ये मिलन की आस
लगा बैठीं हैं , 
इन्हें क्या बताऊ की
हमारी मुहोब्बत मे ये कुछ यादें और
तड़प ही है हमारे नाम 
जैसे
"किनारे से लहरें बस मुहोब्बत
ही कर सकती है , उनकी कभी हो नहीं सकती"

रेवा

Friday, August 6, 2010

Destiny

sometimes i do feel that destiny plays an important part in our life.you try your level best for it but you cant get it.......Just take an example.....if in ur destiny its written ki u will never have love in your life u will never have.....you give your full love but then also you will not get any love and care.....if u think ki i get attached to a different person but if ur not destined u will never get.......an its a mistake if we say love is no give and take....u love but dont ask love in return.......no being a human being u also need love and care....its all about loving caring and sharing.....this is wat i felt......
I know that destiny is in our hands as said...karm karte jao....apni kismat hum apne hantho say likhte hain......its also true.....but sometimes in some places i do feel destiny plays an important role...

rewa

Tuesday, August 3, 2010

दर्द और बरसात

बदरा उमड़ती है बरसात आती है
तेरी यादें अपने साथ लाती है
आँखों को आँसुओं मे डुबो जाती है
दर्द के वेग में दिल की कश्ती डूब जाती है
सपनों के कोपल फूटने से पहले ही
उस वेग में विलीन हो जाते हैं
क्योंकी ये तू भी जानता है
और मै भी की , इस जन्म हमारी
हर बरसात हमारे लिए बस यही
तोहफा लेकर आयेगी

रेवा

Friday, July 30, 2010

कुछ दिल की बात

१. ना आँखों मे कोई ख्वाब है ना धडकनों में कोई गीत
ज़िन्दगी ऐसे जी रहे हैं हम जैसे साज़ बिना संगीत

२. वादा है तुमसे कभी कुछ न छुपायेंगे,
पर अपने मुहँ से कभी कुछ न बताएंगे
पढ़ सको तो पढ़ लो मेरे दिल को
वरना हम यूँही दर्द मे डूबते चले जाएँगे.........

रेवा

Tuesday, July 27, 2010

इलज़ाम

आज फिर किसी ने मुझ पर यह इलज़ाम लगाया
तुझे अपने दोस्तों की कदर नहीं 
ये कह कर दिल दुखाया ,

जब कभी होती है ऐसी बात
टूट कर बिखर जाती हूँ मैं ज़ार ज़ार ,

जब भी कोई रिश्ता बनाया
उसे मैंने सच्चे दिल से निभाया ,

फिर भी हर बार हर जगह
लोगो ने मुझे ही गलत ठहराया ,

कहाँ हो जाती है खता ,ये कभी जान न पाई
पर खुदा को हर बार देती हूँ दुहाई
मुझे ऐसी किस्मत क्यों दी हरजाई /



रेवा

Thursday, July 22, 2010

मेरी सखी के नाम

आज एक गीत सुना तो ,
अपने बचपन की सहेली की याद
आ गयी


वो मेरी सहेली थी
पर मेरे लिए एक पहेली थी
मानती थी बहुत मुझे ,
चाहती थी हर वक़्त मेरा साथ
पर छोटी छोटी बातों मे रूठ
जाती थी बिन बात 

कहती थी ,
ज़िन्दगी की राहों  में 
न छोड़ेगी कभी मेरा हाथ ,
चाहे कैसे भी हो जाएँ हालात
रहेगी वो हमेशा मेरे साथ ,

पर वक़्त ने ऐसी करवट बदली
बुरी लग गयी उसे कुछ बात
छोड़ दिया साथ ,
तोड़ दिए सब जज्बात ,

बहुत से ख़त लिखे
लाख करी मनुहार
पर पा न सकी उसकी
दोस्ती और प्यार ,
पर आज भी
आँखों में भर कर प्यार
करती हूँ  उसका इंतज़ार ....



रेवा

Tuesday, July 20, 2010

कुछ पंक्तियाँ

१. अपनी ज़िन्दगी से ज्यादा कोई किसी को नहीं चाहता
और अपनी मौत से ज्यादा कोई किसी से नहीं डरता

२. दिल के टूटने की आवाज़ नहीं होती
दर्द की कोई साज़ नहीं होती

रेवा

Friday, July 16, 2010

अच्छा लगता है मुझे

तेरे खयालों में जीना
तुझमे खो जाना
अच्छा लगता है मुझे ,

तेरी यादों मे रोना
तेरी बातो पे मुस्काना
अच्छा लगता है मुझे ,

तेरे खयालों से प्यार
तेरी बातो पे ऐतबार
अच्छा लगता है मुझे ,

चुप चाप बैठ
तुझे अपने पास महसूस करना
अच्छा लगता है मुझे,

बिन बरसात तेरे
प्यार मे भीग जाना
अच्छा लगता है मुझे ,

तेरे साथ जीना
पर बिन तेरे मर जाना
अच्छा लगता है मुझे l 



रेवा



Wednesday, July 14, 2010

ये क्या काम किया तुने

कल रात बहुत रोई थी
एक मिनट न सोयी थी ,
ह्रदय द्रवित हो रहा था बहा नीर
मन भी खो रहा था धीर,

ये क्या काम किया तुने
प्यार को पीड़ा का नाम दिया तुने ......

हर दुआ मे हाँथ उठते है तेरे लिए
दिन के हर पल का एहसास है तेरे लिए
ये सांसे भी चलती हैं तेरे लिए
ये तड़प ये कसक है तो वो भी बस तेरे लिए,

पर ये क्या काम किया तुने
प्यार को पीड़ा का नाम दिया तुने..........

तू जो समझे वो तेरी मर्ज़ी
पर मेरी भी है एक अर्जी 
तू ये काम न कर ,
मेरे प्यार को पीड़ा का नाम न धर
मेरे प्यार को पीड़ा का नाम न धर........

रेवा

Friday, July 9, 2010

एक छोटी बच्ची की कहानी

घर मे थी वो सबसे छोटी
सांवले रंग रूप वाली बाला,
सर पर था लम्बे बालों का घेरा
जिनमे था जुओं का भी डेरा,
हर वक़्त हंसती थी
पर सच्ची दोस्ती को तरसती थी
आंखे बरबस बरसती थी ,
पढने मे थी सामान्य
पर बड़े बड़े थे अरमान,
कोशिश पूरी की
पर पा न सकी
अपनी मंजिल अनजान ,
ब्याह हुआ डोली चढ़ी
फिर जगे अरमान,
रखा सबका ध्यान
सास ससुर को दिया सम्मान
पति को प्यार और मान ,
पर बन न सकी
उसकी दोस्त और जान ,
सच्ची दोस्ती और प्यार को
आज भी तरसती है वो अनजान
आँखे बरबस बरसती है ये मान /


रेवा

Thursday, July 8, 2010

ज़िन्दगी

ये एहसासों ,ख़यालों और वास्तविकता
का कैसा ताना बाना है
जितना सुलझाओ और उलझता ही जाता है ,

एहसास तो इतने ,जितने बूंद समुंदर मे समाये
जितने तारे असमान में जगमगाए ,

ख्याल ऐसे जैसे धरती पर स्वर्ग उतर आये
जैसे चाँद सामने बैठ मुस्कुराये ,

पर जैसे ही वास्तविकता की धरातल
पर पड़े पांव ,

तो पता चले इस ज़िन्दगी के दांव 
देती यह सुख भी दुःख भी
प्यार भी दर्द भी
अपने भी पराये भी
दोस्त भी दुश्मन भी
पर इसी का तो नाम ज़िन्दगी भी है l 

रेवा

Wednesday, July 7, 2010

प्रशन ?

भगवान से एक प्रशन है आज
ये शरीर तो दिया ,
इसमे ये दिल क्यों दिया  ?
ये दिल तो दिया 
इसमे ये एहसास क्यों दिया ?
एहसास तो दिया 
प्यार क्यों दिया ?
प्यार तो दिया 
दर्द क्यों दिया ?
दर्द तो दिया 
उसे सहने की शक्ति क्यों नहीं दी ?
क्यों ?

रेवा

Saturday, July 3, 2010

माना अभी मैं बच्ची हूँ

माना अभी मैं बच्ची हूँ
अक्ल की थोड़ी कच्ची हूँ
मगर दिल की बहुत सच्ची हूँ ,

माना के सपने अधूरे हैं
इरादे फिर भी पुरे हैं ,
माना के दूर है अस्मा
पाने का फिर भी है अरमा ,

माना अभी मैं बच्ची हूँ
अक्ल की थोड़ी कच्ची हूँ l 

माना की दुनिया की राहों से अनजानी हूँ
इसलिए तो मैं पागल दीवानी हूँ ,
माना के अपने जिद पर जीना चाहती हूँ
पर सिर्फ प्यार ही पाना चाहती हूँ ,

माना अभी मैं बच्ची हूँ
अक्ल की थोड़ी कच्ची हूँ l 



रेवा

Saturday, June 26, 2010

आज फिर

आज फिर किसी ने दिल पर शब्दों के नश्तर चुभोये
आज फिर लहूलुहान हुआ मेरा दिल

आज फिर आंसुओं ने आँखों का साथ छोड़ा
आज फिर तकिये में सर छुपाया मेरा दिल

आज फिर भगवान का द्वार खटखटाया
आज फिर गुहार लगाया मेरा दिल

आज फिर अनगिनत प्रश्नों के अम्बार लगाये
आज फिर निरुत्तर वापस आया मेरा दिल

आज फिर पत्थरो की दी दुहाई
तू क्यों न मेरी जगह आई ... बोला मेरा दिल

रेवा

Wednesday, June 23, 2010

क्या करूँ ?

क्या करूँ के जब कोई प्यार भरा
गीत सुनती हूँ तो तुम याद आते हो ,

क्या करूँ के जब में आइने के सामने
सवरती हूँ तो तुम याद आते हो ,

क्या करूँ के जब ठंडी हवा का झोंका
मुझे छु कर जाता है तो तुम याद आते हो ,

क्या करूँ के जब बारिश की बुँदे मेरे तन
को भिगाती है तो तुम याद आते हो ,

क्या करूँ के जब संध्या की बेला रात के
आगोश में समाती है तो तुम याद आते हो ,

क्या करूँ के दिल की हर धड़कन
के साथ तुम याद आते हो ...........

क्या करूँ ?

रेवा

Saturday, June 19, 2010

उफ्फ्फ वो कॉलेज के दिन

उफ्फ्फ्फ़ वो कॉलेज के दिन भी क्या दिन थे
वो बातें वो मुलाकातें ........
वो कैंटीन की मस्ती ...वो छीना झपटी
बगल की बेंच खाली रखना और तेरा इंतज़ार करना
तेरा हमेशा की तरह पेन भूल जाने के
बहाने मुझे देखना .......
ठण्ड में घंटो धुप में बैठ कर फाइल पूरा करना
तेरा पैसे न लाना और मेरी शाल गिरवी रख
कर किताब लेना ........
घंटो कॉलेज की सीडी पर बैठ कर बातें करना
घर से जूठ बोल बोल कर कॉलेज में मिलना
बरसात में एक छत्री के निचे रहने के लिए अपनी छत्री छुपाना
अनगिनत ऐसी यादें .............
काश वो दिन फिर आ जाये ..........
उफ्फ्फ वो कॉलेज के दिन

रेवा

Monday, June 14, 2010

दोस्त और प्यार

वक्त का आँचल थाम
ज़िन्दगी की राहों को जान
आगे बढ़ गयी मैं अनजान,

प्यार ने कहा पुरे करूँगा 
तेरे प्यार के अरमान ,
दोस्त ने कहा दूंगा तुझे मान
तेरी कमियों को जान
रिश्तों  पर हावी न होने दूंगा ये मान,

पर जब समय पड़ा आन
दोस्त ने कहा तू है अनजान
तेरी कमियां है महान,

प्यार ने दी दुहाई मेरी जान
मैं हुं मामूली इंसान
न पुरे कर सकू तेरे अरमान,

ये कैसी है दुनिया
कैसे हैं  इंसान ?
माँगा था बस प्यार और मान
वो भी न दे सका इंसान l 



रेवा


Thursday, June 10, 2010

वो ढलती शाम

काश वो ढलती शाम फिर आ जाये 

फिर मैं उस भीढ़ भाड़ मे खड़ी तेरा इंतज़ार करु
फिर तू कहीं नज़र न आये
फिर से मै बेक़रार हो जाऊ 
और इंतज़ार मैं तेरे अपनी रुमाल के कोने घुमाऊ ,

फिर अचानक भीड़ में तेरा नज़र आना
हमारी नज़रों का मिलना
नज़रों ही नज़रों में एक दुसरे को पहचानना 
और शर्म से मेरी नज़रों का झुक जाना ,

फिर वो कॉफ़ी  और चने के साथ अनगिनत बातें करना
बातो के साथ नज़रे चुरा कर एक दुसरे को देखना ,
झील के किनारे होले होले ठंडी हवा के साथ बहना
चाँद का झांक कर हमे देखना
वक़्त का ठहर सा जाना ,

काश वो ढलती शाम फिर आ जाये l 


रेवा


Tuesday, June 8, 2010

क्या बताऊँ

क्या बताऊँ  कितना प्यार है तुझसे
दुःख में सुख की अनुभूति है तुझसे 

एक खिचाव एक जुड़ाव है तुझसे 
हर पल एक मीठा एहसास है तुझसे

हवा में खुशबू है तुझसे 
बारिश की बूंदों की फुहार है तुझसे

चांदनी की शीतलता है तुझसे 
दिल के हर एक तार मे मधुर झंकार है तुझसे

मेरे जज्बातों को पनाह मिली है तुझसे
क्या बताऊँ तुझे की कितना प्यार है तुझसे

मेरी ज़िन्दगी का सार ही है तुझसे 


रेवा

Thursday, May 20, 2010

कैसी है ज़िन्दगी

किसी ने एक दिन मुझसे प्रशन किया
बता कुछ अपनी ज़िन्दगी के बारे में
मैं सोच में थी की क्या जवाब दू क्या बताऊ
कैसी है ज़िन्दगी ................

क्या बताऊ की हर पल एक अधूरेपन का एहसास है ज़िन्दगी
हर चीज़ मिली है किस्तों में .............
अधुरा बचपन अधुरा यौवन
अधुरा प्यार अधूरी दोस्ती
अधूरी हंसी अधूरी ख़ुशी
अधूरे बिखरे सपने
अधूरे मेरे अपने ........

क्या बताऊ कैसी है ज़िन्दगी ......
आंसू की धार है ज़िन्दगी
उदासी गले का हार है ज़िन्दगी
क्या बताऊ की कैसी है ज़िन्दगी ................

रेवा

Monday, May 10, 2010

क्या यही मेरी जिन्दगी है

बहुत इंतज़ार के बाद तुम आये
एक विरहन के तपते ह्रदय में
ठंडी हवा का झोंका बनकर .............

यथासंभव मुझे मेरे स्थान से डिगा कर
परम सुख की अनुभूति बनकर ..........

मैं भी ऐसे रमी तुझमे के भूल ही गयी
की एक दिन तू फिर मुझे उसी
स्थान पर छोड़ कर चला जाएगा .........

फिर उसी इंतज़ार ...उसी तड़प...उसी विरह वेदना
में जलने के लिए ,
उसी आंसुओं के समंदर मैं गोता लगाने
के लिए छोड़ जाएगा ...........

क्या यह इंतज़ार कभी ख़त्म न होगा
क्या मैं सदा ही तड़पती रहूंगी
क्या यही मेरी ज़िन्दगी है ???

रेवा

Sunday, May 2, 2010

क्या लिखूं

क्या लिखूं की आज एहसासों को शब्दों
में ढालने की कोशिश नाकाम हो रही है , 
क्या लिखूं अपने मन की उलझन या
पीड़ा ,या कुछ प्रशन ? 

क्या अपने लिए जीना गुनाह है ?
जब तक आप लोगों के लिए ,
उनकी ख़ुशी के लिए जीयो  
आप अच्छे हो ,
जहाँ आप अपने लिए जीने की कोशिश करो ,
तो आप स्वार्थी हो ,
वाह री दुनिया ,वाह रे लोग ,


क्या लिखूं उस उलझन को के जब तक प्यार नहीं था जीवन में ,
तब तक पता ही नहीं था की प्यार क्या होता है ?
अब जब है ,तो पता नहीं सही या गलत ?


क्या लिखू की एक अंतहीन पीड़ा है मन में
हर पल सही होते हुए भी गलत ठहराया जाना ,
हर पल दोस्ती के लिए जान देते हुए भी ,ठुकराया जाना , 
पूरा प्यार न्योछावर करते हुए भी , उसके लिए भीक मांगना ,
जिस से प्यार की आशा हो , 
उससे बस ,जिम्मेदारी और तिरस्कार पाना ,
जिससे कोई रिश्ता नाता न हो उससे प्यार मिलना ,
और फिर खुद को हर पल कठघरे में खड़ा करना l 

क्या लिखूं की आज एहसासों ने  
शब्दों का साथ छोड़ दिया है l 

रेवा

Friday, April 30, 2010

वो चांदनी रात

वो चांदनी रात
वो तेरा साथ,

वो वादियाँ वो फिजायें
वो झरने वो ठंडी हवाएँ,

वो लम्हा वो पल
वो बेचैनी हर पल,

वो नज़रों का मिलना
मिल कर झुक जाना,

वो तेरा हौले से आना
आकर चले जाना,

वो मेरी खुशी
वो मेरी ज़िन्दगी,

वो चांदनी रात
वो तेरा साथ l 


रेवा

Sunday, April 25, 2010

दर्द

दर्द शब्द खुद में
इतना दर्द पूर्ण है की क्या कहूँ  ...

न जाने कहाँ से ज़िन्दगी में
आ जाता है दर्द,
क्यों मन को इस कदर
दुखाता है दर्द,
आँखों से लहू बन कर
बहता है दर्द,
पन्नों पर शब्द बन कर
बिखर जाता है दर्द,
दिल को बहुत दुखाता है यह दर्द

बेगाने क्या अपने भी
दे जाते है दर्द,
हँसी में भी दबे पाँव
आ जाता है दर्द,
हर पल अपने होने का
 एहसास दिलाता है दर्द,
सांसों में क्या अब तो
धड़कनों में भी बस गया है दर्द,
न जाने कहाँ से ज़िन्दगी में
आ जाता है दर्द ....



रेवा

Saturday, April 17, 2010

सूनी धरती

तेरे प्यार के बिना मेरे जीवन की धरती सूनी थी ,
सोचा था की जब हम मिलेंगे वो फिर से हरी भरी हो जाएगी ,
पर क्या पता था मुझे की वो जैसी है वैसे ही रहेगी ,
तड़पती तरसती .....बारिश की हर एक के बूंद को ,
हर दिन नयी सुबह का इंतज़ार करती ,
हर रात फिर अपनी आशाओं का दम तोड़ती ,
अपनी दुनिया मे जीती ....
पर जिसकी दुनिया ही तेरा प्यार हो ,

वो कैसे जिये  कैसे रहे अपनी दुनिया में
कैसे कैसे...........


रेवा

Tuesday, April 13, 2010

आँसू..







कभी महसूस किया है इन आँसुओं को ?

गालो को गिला करते ढुलकते आँसू

आँखों से बहने के बाद लम्बा सफ़र तय  करते आँसू 

हमें  अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाते आँसू 

कभी ऐसे ही बहते , बिना किसी बात के

कभी मन के तमाम दुखों  को झेलते झेलते

थके से आँसू 

कभी बिना रोक टोक के अविरल बहते ये आँसू 

कभी जोर जोर से विलाप करते ये आँसू 

कभी ख़ुशी का इज़हार करते ये आँसू 

आँसू चाहे जैसे भी हों

हर पल हमें अपनी दोस्ती का सबूत देते हैं ये आँसू 

कभी महसूस किया है इन आँसुओं को  ?


रेवा


Sunday, February 14, 2010

मेरे मन की बगिया मे





मेरे मन की छोटी सी बगिया में ,


अपने प्यार का फुल हमेशा खिलाये रखना

चाहे जैसे भी मौसम आये उसे हरा भरा रखना ,


पतझड़ हो या बसंत ,


बारिश हो या कड़ी धुप ,


मिल कर बाँट लेंगे हर सुख दुःख ,

बस मेरे मन की छोटी सी बगिया में

अपने प्यार का फुल हमेशा खिलाये रखना ..........




रेवा 



Saturday, February 13, 2010

क्यों

प्यार को प्यार क्यों चाहिए ?
कशिश को तड़प क्यों चाहिए ?
दर्द को दवा क्यों चाहिए ?
दिल को सुकून क्यों चाहिए ?
आँसुओं को पनाह क्यों चाहिए  ?                   
दामन को खुशियाँ क्यों चाहिए ?
आँखों को शीतलता क्यों चाहिए ?
होंठो को मुस्कान क्यों चाहिए ?
ज़िन्दगी को मौत क्यों चाहिए ?
क्यों क्यों ..................

रेवा

Tuesday, January 26, 2010

ओस की बूंद








ओस की बूंद सी है
मेरी ज़िन्दगी
सिमटी सकुची
खुद में ,
अकेले तन्हा
पत्ते की गोद
पर बैठी ,
सूर्य की
किरणों के साथ ,
चमकती, दमकती,
इठलाती 
मन में कई
आशाएं जगाती,
हवा के थपेड़ो को
झेलती, सहती 
फिर उसी मिट्टी में
विलीन हो जाने को
आतुर रहती ....
ओस की बूंद सी है
मेरी ज़िन्दगी

रेवा